Book Title: Shravakachar Sangraha Part 2
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 16
________________ ( १५ ) श्रावकको वीरचर्या, दिनमें प्रतिमायोग धारण करने आदिका निषेध श्रावकको दान, शील, उपवास और जिनपूजारूप चतुर्विध स्वधर्मके पालनका उपदेश सल्लेखनाकी भावना करते हुए समाधिमरण करनेकी प्रेरणा ७६-७७ अष्टम अध्याय ७८-९४ सल्लेखना करनेवाले साधकका स्वरूप ग्यारहवीं प्रतिमावालेको मुनिपद धारण करना चाहिए,किन्तु जो मुनि बनने में। असमर्थ हैं, उन्हें जीवनके अन्तमें सल्लेखना स्वीकारकरनेका उपदेश ..." समाधिमरण आत्मघात नहीं, इसका सयुक्तिक निरूपण निमित्तशास्त्रसे मरण समीप ज्ञात होनेपर, अथवा उपसर्ग, असाध्य रोगादिक होनेपर सल्लेखना स्वीकार करनेका उपदेश काय और कषायको कृश करते हुए समाधिमरणका उद्यम करे मरण-समय धर्मकी विराधना करनेवालेका जीवनपर्यन्त किया गया धर्माराधन व्यर्थ है मुक्तिके दूरवर्ती होनेपर भी अव्रती जीवन-यापनकर नरक जानेकी ___अपेक्षा व्रत-पालनकर स्वर्ग जाना श्रेयस्कर है कषायोंको कृश किये विना कायका कृश करना व्यर्थ है समाधिमरणकी प्रेरणा और उसका फल समाधिमरणके योग्य स्थानका निर्देश तीर्थके लिए प्रस्थित साधु यदि मार्गमें ही मरणको प्राप्त होता है, तो भी ___ वह आराधक ही है। समाधिमरण धारण करनेके पूर्व क्षमा करना-कराना आवश्यक है समाधिमरणके योग्यस्थानपर जाकर और आचार्यसे अपने पूर्व-कृत दोषोंकी आलोचना करके संस्तरको ग्रहण करे समाधिमरणके समय पुरुषके औत्सर्गिक और आपवादिक लिंगका विधान । श्राविका और आर्यिकाके लिंगका विधान समाधिमरणके समय द्रव्य और भावसे समस्त परद्रव्योंको परित्यागका उपदेश विवेक-पूर्वक अन्तरंग और बहिरंग शुद्धिका विधान निर्मापकाचार्यको आत्म-समर्पणकर महाव्रतोंको स्वीकार करे समाधिमरणके अतिचारोंका परित्याग करे आचार्य आराधककी सेवाके लिए योग्य व्यक्तियोंको नियुक्त करे आचार्य आराधकको किस प्रकार सम्बोधन कर उसकी विषयाभिलाषाका ____ त्याग करावे, इसका विस्तृत उपदेश तत्पश्चात् क्रमशः चारों प्रकारके आहार-त्यागका विधान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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