Book Title: Shravakachar Sangraha Part 2
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 17
________________ अतिचाररूप पिशाचोंसे आत्म-संरक्षणका विशद उपदेश आराधककी समाधिके लिए संघ कायोत्सर्ग करे। आराधककी शक्ति क्षीण होनेपर आचार्य उसके कानोंमें पंचनमस्कार मंत्र सुनाता हुआ उसके हृदयस्थ सूक्ष्म भी मिथ्यात्वका मधुर उपदेशसे वमन करावे विषय-कषायोंको जीतने और महाव्रतोंको रक्षाका उपदेश मिथ्यात्वके दुष्फल और सम्यक्त्वके सुफलका उपदेश जिनभक्तिका महाफल बताकर उसमें संलग्न रहनेका उपदेश णमोकार मन्त्रका स्मरण करते हुए प्राणोंका परित्याग करनेवाले गोप दृढ़सूर्य आदिके दृष्टान्त देकर क्षपकको सम्बोधन हिंसाका दुष्फल और अहिंसाका महाफल असत्य भाषण और चोरी करनेवालोंके दृष्टान्त देकर उनके त्यागका उपदेश .... अब्रह्म-सेवन और परिग्रहमें मूर्छा रखनेवालोंके दृष्टान्त देकर उनके त्यागका उपदेश बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रहका त्यागकर प्रवचनका चिन्तन करते हुए आत्मस्वरूपमें एकाग्र रहनेका उपदेश परिषह और उपसर्गोको सहन करके आत्म-साधना करनेवाले पूर्वकालीन ____ महामुनियोंके नामोल्लेख कर आराधकको उनके सहन करनेका उपदेश .... ९१-९२ सम्यक आराधनासे परमपदकी प्राप्तिका उपदेश देकर आचार्य आराधकका उत्साह बढ़ावे ९३ सम्यक् आराधना करनेके फलका वर्णन .... ९३-९४ ११ धर्म संग्रह श्रावकाचार ९५-१९७ प्रथम अधिकार ९५-१०३ गणघरका श्रेणिकको धर्म-देशना-श्रवणार्थ संवोधन मनुष्य भवकी दुर्लभताका वर्णन प्राप्त मनुष्य भवको धर्म धारण कर सफल करनेका उपदेश अट्ठारह दोष-रहित ही सच्चा देव होता है दोषोंके युक्त ब्रह्मादि-प्रतिपादित धर्म कैसे हो सकता है यदि राग-द्वेष युक्त भी जीवोंको देव माना जाय, तो फिर सारा संसार ही देवरूप हो जायगा सत्यार्थ देव-प्रतिपादितके दो भेद-अनगार धर्म और सागार धर्म सागारधर्मका प्रतिपादन और ग्यारह प्रतिमाओंके नामोंका निर्देश सम्यक्त्वका स्वरूप और सप्त तत्त्वोंका प्रतिपादन मिथ्यात्वके भेद-प्रभेदोंका निरूपण सम्यक्त्वके पच्चीस दोषोंका विस्तृत वर्णन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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