Book Title: Shraddhey Ke Prati Author(s): Tulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni Publisher: Atmaram and Sons View full book textPage 6
________________ भगवन् । आराम मे पहुँचते ही सब भिक्षु शय्या रोकने की अहमहमिका मे लगते हैं। पड्वर्गीय भिक्षु इम दौड में सबसे आगे रहते हैं । यही कारण है कि महाप्रज्ञ सरिपुत्त को शय्या नहीं मिली और वृक्ष-मूल पर ही सारी रान काटनी पड रही है । गौतम बुद्ध को इस अव्यवस्था और ग्रसद् व्यवस्था पर भारी दुख हुया । उन्होने सोचा, शीघ्र ही मुझे इस विषय मे एक सर्वमान्य व्यवस्था कर देनी चाहिए । प्रात काल सब भिक्षुत्रों को एकत्रित कर रात को घटना कह सुनाई और सनसे पूछा - भिक्षुयो । अपनी-अपनी समझ से बताओ कि भिक्षु सघ मे श्राहार, पानी, शय्या और आदर पहले किसे मिलना चाहिए श्रर्थान् इन विषयो मे श्रमिक सविभाग कैसे हो ? क्षत्रिय भिक्षुग्रो ने कहा- इन विपयो मे पहला स्थान क्षत्रिय भिक्षुओ का होना चाहिए, क्योंकि वे राजकुल से आये हैं, वे राजमहलो के भोगोपभोग में रहे हैं । ब्राह्मण भिक्षुम्रो न कहा— प्रथम स्थान ब्राह्मण भिक्षुत्रो का होना चाहिए। वे समाज मे भी गुरु स्थानीय रहे हैं । अन्याय भिक्षुओं ने और भी अनेको विकल्प बुद्ध को सुझाये, पर उन्हें एक भी विकल्प पसन्द नही आया । अत मे उन्होंने स्वयं कहाश्राज से में व्यवस्था करता हूँ, उक्त सविभाग दीक्षा श्रम से चलाये जायें । त्याग, सयम और चारित्र मे जो ज्येष्ठ हैं, वे ही वस्तुत श्रादरास्पद हैं। उस दिन से यही व्यवस्था भिक्षु संघ में प्रवृत्त हो गई । तेरापन्य सदा से ही व्यवस्था के उप पर रहा है, प्राक्तन प्राचार्यों ने सघ सम्बन्धित काय-कलापो के लिए समुचित व्यवस्थाए दी और उनका विकास आज भी सतत प्रवाही है । प्राचार्यवर ने कुछ एव गीतिकाओ मे तेरापथ का समग्र सविधान ही उपस्थित कर दिया है। एक गीतिका विशेष में वे कहते हैं Waldpa सकल साधु ग्ररु साघवी वही एक सुगुरु से आण हो । चेला चेली आप ग्रापरा कोई मत करो, करो पचखाण हो ॥ गुरु भाई चेला भणी कोइ सूपं गुरु निज भार हो । जीवन भर मुनि साहुणो कोइ मत लोपो तसु कार हो ॥ श्रावं जिणने मुडनै कोइ मति रे वधाम्रो भेस पूरी कर कर पारसा कोइ दीक्षा दिज्यो देव देस हो । हो । वोल श्रद्धा श्राचार से कोइ नवो निकलियो जाण हो । मत चरचो जिण तिण कने करो गणपति वचन प्रमाण हो ।Page Navigation
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