Book Title: Shraddhey Ke Prati Author(s): Tulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni Publisher: Atmaram and Sons View full book textPage 5
________________ पर रची गई है । सामान्य रसवती और पर्व-सम्बद्ध रसवती में महान् अन्तर रहता ही है । इसी प्रकार विशेप पर्वो के सम्बन्ध में रची गई गीतिकाएं विगेप होती ही है । देव प्रकरण में आचार्य श्री के श्रद्धेय भगवान् ऋपभदेव, भगवान् शातिनाथ, भगवान् श्री महावीर आदि तीर्थकर है। गुरु प्रकरण में उनके श्रद्धेय तेरापन्थ-प्रवर्तक प्राचार्य श्री भिक्षु है । वे एक निस्पम महापुरप थे । सयम और साधन वा पुनरुज्जीवन उनका मन था। कूड़े-कचरे की अनेक तहों मे दबी साधना का महाय मणि को निकाल लेना कोई सहज बात नहीं थी। उन्होने अपने प्रारको कता, पर संयम को वृद्धिगंत होने दिया । उन्होने स्वय मान और अपमान को समबुद्धि से नहा, पर सत्य का सम्मान वढाया । वे स्वयं कंटकाकुल मार्ग पर चले, पर धर्म को निष्कटक मार्ग पर ले आए। ऐसे महापुस्प के प्रति अर्पित श्रद्धाजलिया और वे भी आचार्य श्री तुलसी द्वारा, जिनकी अभिधा ही जिनका परिपूर्ण परिचय है, किसके मानस को श्रद्धा और विराग के अजल आनन्द में प्रोत-प्रोत नहीं कर देती । और इस प्रकरण में उनके श्रद्धेय है-श्रीमज्जयाचार्य, श्रीमद डालगणी व उनके अपने दीक्षा-गुरु श्रीकालूगणी। त्रिपदी का तीसरा तत्त्व धर्म है। उसका अाधार धर्म संघ है। बौद्ध लोग कहते है-'सघ सरण गच्छामि' मै सब की गरण जाता हूँ । सचमुच ही तेरापन्थ जैसा संघ व्यक्ति का त्राण बनता है । जहां व्यक्ति समुदाय मे ऐसा मिल जाता है, जैसे वर्षा की बूद समुद्र मे । व्यक्ति और समुदाय की यह अभिन्नता ही पारमार्थिक अानन्द की सृष्टि करती है । संघ का ध्येय है-- ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की अभिवृद्धि । उसका आधार है-सह जीवन के योग्य व्यवस्था । व्यवस्था साधना मे साधक भी वनती है, बाधक भी । जो वाधक बनती है, वह या तो अव्यवस्था है या असद् व्यवस्था । व्यवस्था मे व्यक्ति का चैतन्य कुण्टित नही बनता । अव्यवस्था या असद् व्यवस्था के दुष्परिणाम तत्काल अपने आपको प्रकट करते है । एक वार गौतम बुद्ध अपते विशाल भिक्षु समुदाय के साथ आराम में रात्रि-विश्राम कर रहे थे। आधी रात के लगभग सारिपुत्त के खांसने की आवाज उनके कानों में पड़ी और अचानक उनकी नीद टूटी । उन्होने अन्य भिक्षुओ से पूछा-हम सव इस प्रासाद के भव्य कक्षो मे सो रहे है और सारिपुत्त बाहर खांस रहा है। क्या वह वहीं किसी वृक्ष की छाया मे सोया है ? भिक्षुओ ने कहा-भगवन् ! उन्हें यहा स्थान नहीं मिला, इसलिए उन्हें तरुवासी होकर ही आज की रात काटनी पड़ रही है । गौतम बुद्ध ने कहा-ऐसा क्यो हुआ ? छोटे-बड़े सभी भिक्षुग्रो को स्थान मिला और मेरे धर्म सेनापति सारिपुत्त को स्थान नही मिला ? भिक्षुPage Navigation
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