Book Title: Shatkhandagama Pustak 06
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ९–१, ५.
ज्जिदुमंडल भागाणमेगत्तुवलंभा । एवं संते आवरिज्जावारयभावो जुज्जदे, अण्णहा तस्सावलंभप्पसंगादो | पज्जवट्ठियणए अवलंबिज्जमाणे आवरिज्जमाणणाणभागा णत्थि, सिं तदुवलंभाभावा । ण च एदं सुतं पज्जवट्ठियणयमवलंबिय दिं, तदावरिज्जमाणावारयववहाराभावा। किंतु दव्वट्ठियणयमवलंविय सुत्तमिदमत्रट्ठिदं, तेणेत्थ आवरिज्जमाणावारयभावो ण विरुज्झदे । किमहं णाणमावरिज्जमाणमिदि ? उच्चदे - अप्पणो विरोहिदव्वसण्णिहाणे संते विजं णिम्मूलदो ण विणस्सदि, तमावरिज्जमाणं, इदरं चावारयं । ण च णाणस्स विरोहिकम्मदव्त्रसष्णिहाणे संते णिम्मूलविणासो अत्थि, जीवविणासप्पसंगा । तदो णाणमावरिज्जमाणं, कम्मदव्वं चावारयमिदि उत्तं । कथं पोग्गलेण जीवादो पुधभूद्रेण जीवलक्खणं णाणं विणासिज्जदि ? ण एस दोसो, जीवादो पुधभूदाणं घड पडत्थंभंधयारादीणं जीवलक्खणणाणविणासयाणमुवलंभा । णाणाचारओ पोग्गलक्खंघो पवाहआवरित और अनावरित भागोंके एकता पाई जाती है ।
इस प्रकार उक्त व्यवस्थाके होनेपर आत्रियमाण और आवारकभाव बन जाता है, अर्थात् ज्ञान तो आवरण करने योग्य और कर्म- पुद्गल आवरण करनेवाले सिद्ध हो जाते हैं । यदि उक्त व्यवस्था न मानी जायगी तो उसके अनुपलम्भका प्रसंग प्राप्त होगा । किन्तु पर्यायार्थिकनयका अवलम्बन करने पर आव्रियमाण ज्ञान भाग सावरण जीवमें नहीं होते हैं, क्योंकि, वे ज्ञान भाग उक्त जीवमें नहीं पाये जाते ।
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दूसरी बात यह है कि यह सूत्र पर्यायार्थिकनयका अवलम्बन करके स्थित नहीं है, क्योंकि, उसमें आत्रियमाण और आवारक, इन दोनोंके व्यवहारका अभाव है । किन्तु यह सूत्र द्रव्यार्थिकनयका अवलम्वन करके अवस्थित है, इसलिए यहांपर आव्रियमाण और आवारकभाव विरोधको प्राप्त नहीं होता है ।
शंका- ज्ञानको आव्रियमाण किस लिए कहा है ?
समाधान - अपने विरोधी द्रव्यके सन्निधान अर्थात् सामीप्य होनेपर भी जो निर्मूलतः नहीं विनष्ट होता है, उसे आब्रियमाण कहते हैं, और दूसरे अर्थात् आवरण करनेवाले विरोधी द्रव्यको आवारक कहते हैं । विरोधी कर्मद्रव्यके सन्निधान होनेपर ज्ञानका निर्मूल विनाश नहीं होता है, क्योंकि, वैसा माननेपर जीवके विनाशका प्रसंग आता है । इसलिए ज्ञान तो आव्रियमाण है और कर्मद्रव्य आवारक है, ऐसा कहा गया है ।
शंका - जीवद्रव्य से पृथग्भूत पुद्गलद्रव्यके द्वारा जीवका लक्षणभूत ज्ञान कैसे विनष्ट किया जाता है ?
समाधान - यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, जीवद्रव्यसे पृथग्भूत घट, पट, स्तम्भ और अंधकार आदिक पदार्थ जीवके लक्षणस्वरूप ज्ञानके विनाशक पाये जाते हैं । इस प्रकार यह सिद्ध हुआ कि ज्ञानका आवरण करनेवाला और प्रवाहस्वरूपसे
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