Book Title: Shatkhandagama Pustak 06
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ९-९, १६४.]
चूलियाए गदियागदियाए मणुस्साणं गदीओ
[ ४७५
अधिगदा णियमा सम्मत्तेण चैव णीति ' त्ति जिणाणादो। एत्य ण देव - णेरइय-तिरिक्खसम्माइट्टिणो उप्पज्जंति, एदेसिमेत्थुष्पत्तीए पदुप्पायणजिणाणाभावादो । तम्हा तिरिक्खेसु सम्माइट्टिणो मणुस्सेव' उप्पज्जेति । एवं मणुस्सेसु मणुससम्माइडीणं उप्पत्ती साहेदव्वात्ति ?
एत्थ परिहारो उच्चदे । तं जहा - जेहि मिच्छाइट्ठीहि देवाउअं मोचूण अण्णमाउअं बंधिय पच्छा सम्मत्तं गहियं ते एत्थ ण परिगहिया । तेण एक्कं चेत्र देवगर्दि गच्छंति मणुससम्माइट्टिणो त्ति भणिदं । देवगई मोत्तूणण्णगईणमाउअं बंधिदूण जेहि सम्मत्तं पच्छा पडवण्णं ते एत्थ किण्ण गहिदा ? ण, तेसिं मिच्छत्तं गंतूगप्पणो बंधाउ अवसेण उपज्जमाणाणं सम्मत्ताभावा । सम्मत्तं घेत्तूण दंसणमोहणीयं खविय णिरयादिसु उप्पज्ज माणा वि मणुससम्म इडिगो अस्थि, ते किण्ण गहिदा १ सम्मतमाहप्पपदुप्पायणङ्कं पुव्यंबद्ध आउअकम्ममाहप्पपदुप्पायणङ्कं च ।
जीव नियमसे सम्यक्त्व सहित ही वहांसे निकलते हैं ' ऐसा जिन भगवान्का उपदेश है । यहां तिर्यचोंमें देव, नारकी और तिर्यच सम्यग्दृष्टि जीव तो उत्पन्न होते नहीं, क्योंकि इन जीवोंके यहां उत्पन्न होनेका प्रतिपादन करनेवाला जिन भगवान्का उपदेश पाया नहीं जाता। इसलिये तिर्यचौमें सम्यग्दृष्टि मनुष्य ही उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार मनुष्यों में मनुष्य सम्यग्दृष्टि जीवों की उत्पत्ति साध लेना चाहिये ?
समाधान- यहां उक्त शंकाका परिहार कहते हैं । वह इस प्रकार है- जिन मिथ्यादृष्टियोंने देवायुको छोड़ अन्य आयु बांधकर पश्चात् सम्यक्त्व ग्रहण किया है, उनका यहां ग्रहण नहीं किया गया। इसीलिये ऐसा कहा गया है कि सम्यग्दृष्टि मनुष्य एकमात्र देवगतिको ही जाते हैं ।
शंका- देवगतिको छोड़ अन्य गतियोंकी आयु बांधकर जिन मनुष्योंने पश्चात् सम्यक्त्व ग्रहण किया है, उनका यहां ग्रहण क्यों नहीं किया गया ?
समाधान- नहीं, क्योंकि पुनः मिथ्यात्वमें जाकर अपनी बांधी हुई आयुके वशसे उत्पन्न होनेवाले उन जीवोंके सम्यक्त्वका अभाव पाया जाता है ।
शंका – सम्यक्त्वको ग्रहण करके और दर्शनमोहनीयका क्षपण करके नरकादिकमै उत्पन्न होनेवाले भी सम्यग्दृष्टि मनुष्य होते हैं, उनका यहां क्यों नहीं ग्रहण किया गया ?
समाधान - सम्यक्त्वका माहात्म्य दिखलाने और पूर्वमें बांधे हुए आयुकर्मका माहात्म्य उत्पन्न करनेके लिये उक्त जीवोंका यहां ग्रहण नहीं किया गया ।
२ प्रतिषु ' गहियंति ' इति पाठः ।
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१ प्रतिषु ' मस्सो व ' इति पाठः ।
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