Book Title: Shatkhandagama Pustak 06
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

View full book text
Previous | Next

Page 554
________________ ४९४ छक्खंडागमै जीवट्ठाणं [१, ९-९, २२६. एवं पि सुगमं । देवगदीए देवा देवेहि उव्यट्टिद-चुदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ॥ २२६ ॥ दुवे गदीओ आगच्छंति तिरिक्खगदि मणुसगदिं चेदि॥२२७॥ तिरिक्खेसु उववण्णल्लया तिरिक्खा केई छ उप्पाएंति ॥२२८॥ सव्वमेदं सुगमं । मणुसेसु उववण्णल्लया मणुसा केइं सव्वं उप्पाएंति- केइमाभिणिबोहियणाणमुप्पाएंति, केई सुदणाणमुप्पाएंति, केइमोहिणाणमुप्पाएंति, केइं मणपज्जवणाणमुप्पाएंति, केई केवलणाणमुप्पाएंति, केइं सम्मामिच्छत्तमुप्पाएंति, केइं सम्मत्तमुप्पाएंति, केइं संजमासंजम यह सूत्र भी सुगम है। देवगतिमें देव देवपर्यायों सहित उद्वर्तित और च्युत होकर कितनी गतियोंमें आते हैं १ ॥२२६ ॥ देवगतिसे निकले हुए जीव दो गतियों में आते हैं- तिर्यंचगति और मनुष्यगति ॥ २२७ ॥ देवगतिसे निकलकर तिर्यंचोंमें उत्पन्न होनेवाले तिर्यंच कोई छह उत्पन्न करते हैं ॥ २२८॥ ये सब सूत्र सुगम हैं। देवगतिसे निकलकर मनुष्योंमें उत्पन्न होनेवाले मनुष्य कोई सर्व गुणोंको उत्पन्न करते हैं - कोई आभिनिबोधिक ज्ञान उत्पन्न करते हैं, कोई श्रुतज्ञान उत्पन्न करते हैं, कोई अवधिज्ञान उत्पन्न करते हैं, कोई मनःपर्ययज्ञान उत्पन्न करते हैं, कोई केवलज्ञान उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यग्मिथ्यात्व उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यक्त्व संखातीदाऊ जायंते केइ जाव ईसाणं । ण हु होति सलायणरा जम्मम्मि अणंतरे केई । ति. प. २९४४-२९४५. शलाकापुरुषा नैव सन्त्यनन्तरजन्मनि । तिर्यञ्चो मानुषाश्चैव भाच्याः सिद्धगतौ तु ते । तत्त्वार्थसार २, १६१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615