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छक्खंडागमै जीवट्ठाणं [१, ९-९, २२६. एवं पि सुगमं ।
देवगदीए देवा देवेहि उव्यट्टिद-चुदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ॥ २२६ ॥
दुवे गदीओ आगच्छंति तिरिक्खगदि मणुसगदिं चेदि॥२२७॥ तिरिक्खेसु उववण्णल्लया तिरिक्खा केई छ उप्पाएंति ॥२२८॥ सव्वमेदं सुगमं ।
मणुसेसु उववण्णल्लया मणुसा केइं सव्वं उप्पाएंति- केइमाभिणिबोहियणाणमुप्पाएंति, केई सुदणाणमुप्पाएंति, केइमोहिणाणमुप्पाएंति, केइं मणपज्जवणाणमुप्पाएंति, केई केवलणाणमुप्पाएंति, केइं सम्मामिच्छत्तमुप्पाएंति, केइं सम्मत्तमुप्पाएंति, केइं संजमासंजम
यह सूत्र भी सुगम है।
देवगतिमें देव देवपर्यायों सहित उद्वर्तित और च्युत होकर कितनी गतियोंमें आते हैं १ ॥२२६ ॥
देवगतिसे निकले हुए जीव दो गतियों में आते हैं- तिर्यंचगति और मनुष्यगति ॥ २२७ ॥
देवगतिसे निकलकर तिर्यंचोंमें उत्पन्न होनेवाले तिर्यंच कोई छह उत्पन्न करते हैं ॥ २२८॥
ये सब सूत्र सुगम हैं।
देवगतिसे निकलकर मनुष्योंमें उत्पन्न होनेवाले मनुष्य कोई सर्व गुणोंको उत्पन्न करते हैं - कोई आभिनिबोधिक ज्ञान उत्पन्न करते हैं, कोई श्रुतज्ञान उत्पन्न करते हैं, कोई अवधिज्ञान उत्पन्न करते हैं, कोई मनःपर्ययज्ञान उत्पन्न करते हैं, कोई केवलज्ञान उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यग्मिथ्यात्व उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यक्त्व
संखातीदाऊ जायंते केइ जाव ईसाणं । ण हु होति सलायणरा जम्मम्मि अणंतरे केई । ति. प. २९४४-२९४५. शलाकापुरुषा नैव सन्त्यनन्तरजन्मनि । तिर्यञ्चो मानुषाश्चैव भाच्याः सिद्धगतौ तु ते । तत्त्वार्थसार २, १६१.
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