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________________ १, ९-९, २२५. ] चूलियाए गदियागदियाए तिरिक्ख-मणुस्साण गदीओ गुणुप्पादणं च [ ४२३ चत्तारि गदीओ गच्छंति णिरयगदि तिरिक्खगदिं मणुसगर्दि देवगदिं चेदि ॥ २२२॥ णिरय-देवेसु उववण्णल्लया णिरय-देवा केइं पंचमुप्पाएंतिकेइमाभिणिबोहियणाणमुप्पाएंति, केई सुदणाणमुप्पाएंति, केइमोहिणाणमुप्पाएंति, केइं सम्मामिच्छत्तमुप्पाएंति, केइं सम्मत्तमुप्पाएंति ॥ २२३॥ सुगममेदं। तिरिक्खेसु उववण्णल्लया तिरिक्खा मणुसा केई छ उप्पाएंति ॥२२४॥ एदं पि सुगनं । मणुसेसु उववण्णल्लया तिरिक्ख-मणुस्सा जहा चउत्थपुढवीए भंगों ॥२२५॥ . ................................ तिथंच व मनुष्य मरण करके चारों गतियोंमें जाते हैं- नरकगति, तियंचगति, मनुष्यगति और देवगति ॥ २२२ ॥ तिथंच व मनुष्य मरण करके नरक व देवोंमें उत्पन्न होनेवाले नारकी व देव कोई पांच उत्पन्न करते हैं- कोई आभिनिबोधिक ज्ञान उत्पन्न करते हैं, कोई श्रुतज्ञान उत्पन्न करते हैं, कोई अवधिज्ञान उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यग्मिथ्यात्व उत्पन्न करते हैं, और कोई सम्यक्त्व उत्पन्न करते हैं ॥ २२३ ॥ यह सूत्र सुगम है। - तिर्यंचोंमें उत्पन्न होनेवाले तिर्यंच व मनुष्य कोई छह उत्पन्न करते हैं ।।२२४॥ यह सूत्र भी सुगम है। मनुष्यों में उत्पन्न होनेवाले तिर्यंच व मनुष्य चतुर्थ पृथिवीसे निकलकर मनुष्योंमें उत्पन्न होनेवाले जीवोंके समान गुण उत्पन्न करते हैं ॥ २२५ ॥ .......................... मन-पर्यय विलसम्यक्त्रसम्यमिथ्यात्रसंयमासंयमसंयमानुत्पादयन्ति, न च बलदेववासुदेवचक्रधरत्वान्युत्पादयन्ति, केचित्तीर्थकरत्वमुत्पादयन्ति, अपरे कर्माष्ट कान्तकराः सिध्यन्ति । त. रा. ३, ६. १ संखेन्जाउमाणा मणुवा णर-तिरिय-देव णिरएसुं। सवेसुं जायते सिद्धगदीओ वि पार्वति ॥ ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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