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१, ९-९, २३१. ] चूलियाए गदियागदियाए देवाणं गदीओ गुणुप्पादणं च ( ४९५ मुप्पाएंति, केइं संजमं उप्पाएंति, केइं बलदेवत्तमुप्पाएंति, केइं वासुदेवत्तमुप्पाएंति, केइं चक्कवट्टित्तमुप्पाएंति, केई तित्थयरत्तमुप्पाएंति, केइमंतयडा होदूण सिझंति बुझंति मुच्चंति परिणिब्वाणयंति सव्वदुःखाणमंतं परिविजाणंति ॥ २२९ ॥
सुगममेदं ।
भवणवासिय चाणवेंतर-जोदिसियदेवा देवीओ सोधम्मीसाणकप्पवासियदेवीओ च देवा देवहि उव्वट्टिद-चुदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ॥ २३०॥
दुवे गदीओ आगच्छंति तिरिक्खगदि मणुसगदिं चेव ॥२३१॥
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उत्पन्न करते हैं, कोई संयमासंयम उत्पन्न करते हैं, कोई संयम उत्पन्न करते हैं, कोई बलदेवत्व उत्पन्न करते हैं, कोई वासुदेवत्व उत्पन्न करते हैं, कोई चक्रवर्तित्व उत्पन्न करते हैं, कोई तीर्थकरत्व उत्पन्न करते हैं, कोई अन्तकृत् होकर सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वाणको प्राप्त होते हैं, सर्व दुखोंके अन्तका अनुभव करते हैं ॥ २२९ ॥
यह सूत्र सुगम है।
भवनवासी, वानव्यन्तर व ज्योतिषी देव और देवियां तथा सौधर्म और ईशान कल्पवासी देवियां, ये देव देवपर्यायोंसे उद्वर्तित और च्युत होकर कितनी गतियोंमें आते हैं ॥ २३०॥
उक्त भवनवासी आदि देव और देवियां दो गतियोंमें आते हैं- तिर्यंचगति और मनुष्यगति ॥ २३१ ॥
१ संवुडे णं भंते अणगारे सिन्झइ बुझइ मुच्च परिनिव्वाइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ, से केण?णं सिझइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिवाइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ ? गोयमा, संवुडे अणगारे आउयत्रज्जाओ सत्तकम्मपगडीओ घणियबंधणबद्धाओ सिढिलबंधणबद्धाओ पकरेइ, दीकालट्ठिईयाओ हस्सकालहिइयाओ पकरेइ, तिव्वाणुभावाओ मंदाणुभावाओ पकरेइ, बहुप्पएसग्गाओ अप्पपएसग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मं ण बंधइ, अस्सायावेयणिज्जं च णं कम्मं नो भुजो भुज्जो उवचिणाइ, अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं वीइवयइ । से एएणतुणं गोयमा, एवं वुच्चइ- संवुडे अणगारे सिज्झइ बुज्झइ मुख्चइ पारानब्वाइ व्याख्याप्रज्ञप्ति १, १, १९.
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