Book Title: Shatkhandagama Pustak 06
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ९-१, २८.] चूलियाए पगडिसमुक्त्तिणे णाम-उत्तरयडीओ
जस्स कम्मस्स उदएण जीवसरीरे वण्णणिप्फत्ती होदि, तस्स कम्मक्खंधस्स वण्णसण्णा' । एदस्स कम्मस्साभावे अणियदवण्णं सरीरं होज्ज । ण च एवं, भमर-कलयंठी-हंस-बलायादिसु सुणियदवण्णुवलंभा । ण च णिरुहेउए णियमो होदि, विरोहादो । जस्स कम्मक्खंधस्स उदएण जीवसरीरे जादिपडिणियदो गंधो उप्पज्जदि तस्स कम्मक्खंधस्स गंधसण्णा', कारणे कज्जुवयारादो। जदि गंधणामकम्मं ण होज्ज, तो जीवसरीरगंधो अणियदो होज्ज । होदु चे ण, हत्थि-वग्धादिसु णियदगंधुवलंभादो। जस्स कम्मक्खंधस्स उदएण जीवसरीरे जादिपडिणियदो तित्तादिरसो होज्ज तस्स कम्मक्खंधस्स रससण्णा । एदस्स कम्मस्साभावे जीवसरीरे जाइपडिणियदरसो ण होज्ज । ण च एवं, णिबंब-जंबीरादिसु णियदरसस्सुवलंभादो। जस्स कम्मक्खंधस्स उदएण जीवसरीरे जाइपडिणियदो पासो उप्पज्जदि तस्स कम्मक्खंधस्स पाससण्णा,
जिस कर्मके उदयसे जीवके शरीरमें वर्णकी उत्पत्ति होती है, उस कर्म-स्कंधकी 'वर्ण' यह संज्ञा है। इस कर्मके अभावमें अनियत वर्णवाला शरीर हो जायगा। किन्तु ऐसा देखा नहीं जाता, क्योंकि, भौंरा, कोईल, हंस और बगुला आदिमें सुनिश्चित वर्ण पाये जाते हैं। परन्तु जो कार्य निर्हेतुक होता है, उसमें कोई नियम नहीं होता है, क्योंकि, निर्हेतुक कार्यमें नियमके माननेका विरोध है। जिस कर्म-स्कन्धके उदयसे जीवके शरीरमें जातिके प्रति नियत गन्ध उत्पन्न होता है, उस कर्म-स्कन्धकी 'गन्ध' यह संज्ञा कारणमें कार्यके उपचारसे की गई है। यदि गन्धनामकर्म न हो, तो जीवके शरीरकी गन्ध अनियत हो जायगी।
शंका-यदि गन्धनामकर्मके अभावमें जीवके शरीरकी गन्ध अनियत होती है, तो होने दो, क्या हानि है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि हाथी और वाघ आदिमें नियत गन्ध पाई जाती है।
जिस कर्मस्कन्धके उदयसे जीवके शरीरमें जातिके प्रति नियत तिक्त आदि रस उत्पन्न हो, उस कर्म-स्कन्धकी 'रस' यह संज्ञा है । इस कर्मके अभावमें जीवके शरीरमें जाति-प्रतिनियत रस नहीं होगा । किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, नीम, आम, और नीब आदिमें नियत रस पाया जाता है । जिस कर्म-स्कन्धके उदयसे जीवके शरीरमें जातिप्रतिनियत स्पर्श उत्पन्न होता है, उस कर्म-स्कन्धकी कारणमें कार्यके उपचारसे 'स्पर्श'
१ यद्वेतुको वर्णविभागस्तद्वर्णनाम । स. सि.; त. रा. वा. ८, ११. २ यदुदयप्रभवो गंधस्तद्गन्धनाम । स. सि ; त रा. वा. ८, ११. ३ यन्निमित्तो रसविकल्पस्तदसनाम । स. सि; त. रा. वा. ८, ११. ४ यस्योदयात्स्पर्शप्रादुर्भावस्तत्स्पर्शनाम । स, सि.त. रा. वा. ८,११.
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