Book Title: Shatkhandagama Pustak 06
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ९-८, ६.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए अधापवत्तकरणं
[२३१ एवं सुत्तमंतरकरणं' परूवेदि । कस्स अंतर कीरदि ? मिच्छत्तस्स, अणादियमिच्छाइट्ठिणा अधियारादो। अण्णहा पुण जमत्थि दंसणमोहणीयं तस्स सव्वस्स अंतर कीरदि । कम्हि अंतरं करेदि ? अणियट्टीअद्धाए संखेज्जे भागे गंतूण । अंतरकरणस्स
यह सूत्र अन्तरकरणका प्ररूपण करता है। शंका - प्रथमोपशमसम्यक्त्वके अभिमुख जीव किसका अन्तर करता है ?
समाधान मिथ्यात्वकर्मका अन्तर करता है, क्योंकि, यहांपर अनादि मिथ्यादृष्टि जीवका अधिकार है । अन्यथा पुनः जो ( तीन भेदरूप ) दर्शनमोहनीय कर्म है, उस सबका अन्तर करता है।
विशेषार्थ-विवक्षित कौकी अधस्तन और उपरिम स्थितियोंको छोड़कर मध्यवर्ती अन्तर्मुहूर्तमात्र स्थितियोंके निषेकोंका परिणामविशेषके द्वारा अभाव करनेको अन्तरकरण कहते हैं। प्रकृतमें अनादि मिथ्यादृष्टिके प्रथमोपशमसम्यक्त्वकी उत्पत्तिका अधिकार है । अतएव सातिशय मिथ्यादृष्टि जीव क्रमशः अधःकरण और अपूर्वकरणका काल समाप्त करके जब अनिवृत्तिकरण कालका भी संख्यात बहुभाग व्यतीत कर चुकता है, उस समय मिथ्यात्वकर्मका अन्तर्मुहूर्त काल तक अन्तरकरण करता है, अर्थात् अन्तरकरण प्रारंभ करनेके समयसे पूर्व उदयमें आनेवाले मिथ्यात्वकर्मकी अन्तर्मुहूर्तप्रमित स्थितिको उल्लंघन कर उससे ऊपरकी अन्तर्मुहूर्तप्रमित स्थितिके निषेकोंका उत्कीरण कर कुछ कर्मप्रदेशोंको प्रथमस्थितिमें क्षेपण करता है और कछको द्वितीयस्थितिमें। अन्तरकरणसे नीचेकी अन्तर्मुहूर्तप्रमित स्थितिको प्रथमस्थिति कहते हैं और अन्तरकरणसे ऊपरकी स्थितिको द्वितीयस्थिति कहते हैं। इस प्रकार प्रतिसमय अन्तरायामसम्बन्धी कर्मप्रदेशोको ऊपर नीचेकी स्थितियों में तब तक देता रहता है जब तक कि अन्तरायामसम्बन्धी समस्त निषेकोंका अभाव नहीं हो जाता है । यह क्रिया एक अन्तर्मुहूर्तकाल तक जारी रहती है। जब अन्तरायामके समस्त निषेक ऊपर वा नीचेकी स्थितियों में दे दिये जाते है और अन्तरकाल मिथ्यात्वस्थितिके कर्मनिषेकासे सर्वथा शून्य हो जाता है, तब अन्तर कर दिया गया' ऐसा समझना चाहिए। तभी उक्त जीव मिथ्यात्वकर्मके तीन भाग करता है।
शंका-किसमें, अर्थात् कहांपर या किस करणके कालमें, अन्तर करता है ? समाधान-अनिवृत्तिकरणके कालमें संख्यात भाग जाकर अन्तर करता है।
१ किमंतर करणं णाम ? विवक्खियकम्माणं हेहिमोवरिमद्विदीओ मोत्तूण मझे अंतोमुहुत्तमेत्ताणं हिदीणं परिणामविससेण णिसंगाणमभावीकरणमंतरकरणमिदि भण्णदे ॥ जयध. अ. प. १५३. अन्तरकरणं नामोदयक्षणादुपरि मिथ्यात्वस्थितिमन्तमद्वर्तमानामतिकम्योपरितनी च विष्वम्भयित्वा मध्येऽन्तर्मुहूर्तमानं तत्प्रदेशवेद्यदलिकाभावकरणं । कर्मप्र. पत्र २६०.
२ एवं हिदिखंडयसहस्सेहि अणियहिअद्धाए सखेज्जेसु भागेसु गदेसु अंतरं करेदि । जयध. अ. प. ९५२.
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