Book Title: Shatkhandagama Pustak 06
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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चूलियाए सम्मनुप्पत्तीए णाणत्तविहाणं
१, ९–८, १४. ]
वियप्पा पुरिसवेदेण सरिसा ।
उसवेदे उवदिस्स णाणत्तं वत्तइस्सामो' । तं जहा - अंतरदुसमयकदे णउंसयवेदमुवसामेदि । जा' पुरिसवेदेण उवट्ठिदस्स णउंसयवेदस्स उवसामणद्धा तद्देही अद्धा गदा तो विसयवेदो ण उवसमिदि । तदो इत्थवेदमुवसामेदुमाढवेइ', णवुंसयवेदं पि उवसामेदि चेव । तदो इत्थवेदस्स उवसामणद्धाए पुण्णाए इत्थिवेदो णवुंसयवेदो च उवसामिदा | ताधे चेव चरिमसमयसवेदो भवदि । तदो अवेदो सत्त कम्माणि उवसामेदि । तुला च सत्तहं कम्माणमुवसामणा । एदं णाणत्तं णवुंसयवेदेण उचट्ठिदस्स | सेसा - वियप्पा ते चैव कायव्वा
तो पुरिसवेण सह कोधोदएण उवट्ठिदस्स उवसामगस्स पढमसमयअपुव्वकरणमादिं काढूण जाव पडिवदमाणयस्स चरिमसमयअपुव्यकरणो त्ति, एदिस्से अद्धाए जाणि कालसंजुत्ताणि पदाणि तेसिमप्पा बहुगं वत्तइस्सामा । तं जहा - सव्वत्थावा जह
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विशेषता है, शेष सब विकल्प पुरुषवेदके सदृश हैं ।
नपुंसक वेद से उपस्थित हुए जीवकी विशेषताको कहते हैं । वह इस प्रकार है - अन्तर करनेके पश्चात् दूसरे समय में नपुंसकवेदको उपशमाता है । पुरुषवेदसे उपस्थित हुए जीवके जो नपुंसकवेदका उपशामनकाल है, उतना काल वीत जाता है, तो भी नपुंसकवेदका उपशम पूर्ण नहीं होता । तब स्त्रीवेदको उपशमानेके लिये प्रारम्भ करता है और नपुंसक वेद को भी उपशमाता है । पश्चात् स्त्रीवेदके उपशमकाल के पूर्ण होनेपर स्त्रीवेद और नपुंसकवेद दोनों ही उपशान्त हो जाते हैं । उसी समय ही अन्तिमसमयवर्ती सवेदी होता है । तत्पश्चात् अपगतवेदी होकर सात कर्मोंको उपशमाता है । सात कर्मोंकी उपशामना तुल्य है । यह नपुंसकवेदसे उपस्थित होनेवालेके विशेषता है। शेष विकल्प वे ही अर्थात् पुरुषवेदके सदृश ही करना चाहिये ।
यहांसे पुरुषवेदके साथ क्रोधके उदयसे उपस्थित उपशामक के ( चढ़ते समय ) अपूर्वकरणके प्रथम समयको आदि लेकर उतरते हुए अपूर्वकरणके अन्तिम समय तक इस कालमें जो कालसंयुक्तपद हैं उनके अल्पबहुत्वको कहते हैं । वह इस प्रकार है- जघन्य
१ थीउदयरस य एवं अवगदवेदो हु सत्तकम्संसे। सममुवसामदि संदरसुदए चडिदस्स वोच्च्छामि ॥ लब्धि. ३६१.
२ मप्रतौ ' जो ' इति पाठः ।
३ आती ' - मावे ' मप्रतौ ' मादवइ ' इति पाठः ।
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४ संदुदयंतरकरणो संदद्वाणम्हि अणुवसंतंसे । इत्थिस्स य अद्धाए संटं इत्थि च समगमुवसमदि ॥ ताहे चरिमसवेदो अवगतवेदो हु सत्तकम्मंसे । सममुवसामदि सेसा पुरिसोदयचलिदभंगा हु | लब्धि. ३६२-३६३. ५ पुंकोहस्स य उदए चलपलिदेऽपुव्वदो अपुव्वो त्ति । एदिस्से अद्धाणं अप्पाबहुगं तु वोच्छामि ॥ लब्धि. ३६४.
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