Book Title: Shatkhandagama Pustak 06
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४४०] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ९-९, ५२. कुदो ? मिच्छत्तेण णिरयगई गयाणं तत्थ सम्मत्तं पडिवज्जिय तेण सम्मत्तेण सह णिग्गमणे विदियादिपंचसु . पढवीसु विरोहाभावा । सम्मामिच्छादिट्ठि-आसाणाणं सम्मादिट्ठीणं व विदियादिपंचसु पुढवीसु अधिगमो णत्थि । कुदो ? तेसिमेत्थ अधिगमापदुप्पायणादो।
सत्तमाए पुढवीए णेरइया मिच्छत्तेण चेव णीति ॥५२॥
कुदो ? सम्मत्त-सासण-सम्मामिच्छत्ताई गयाणं पि तत्थतणजीवाणं णियमेण मरणकाले मिच्छत्तपडिवज्जणादो । किं कारणं ? तत्य तेसिं अच्चंताभावस्स अवट्ठाणादो ।
तिरिक्खा केइं मिच्छत्तेण अधिगदा मिच्छत्तेण णीति॥५३॥ सुगममेदं । केई मिच्छत्तेण अधिगदा सासणसम्मत्तेण णीति ॥ ५४॥ एदं पि सुगमं ।
क्योंकि, मिथ्यात्वके साथ नरकगतिमे जानेवाले जीवोंका वहां सम्यक्त्व प्राप्त करके उसी सम्यक्त्व सहित निकलने में द्वितीयादि पांच पृथिवियोंमें कोई विरोध नहीं आता। सम्यग्मिथ्यादृष्टि और आसादनगुणस्थानवी जीवोंका सम्यग्दृष्टि जीवोंके समान द्वितीयादि पांच पृथिवियों में प्रवेश नहीं होता, क्योंकि यहां उनके प्रवेशका प्रतिपादन नही किया गया है।
सातवीं पृथिवीसे नारकी जीव मिथ्यात्व सहित ही निकलते हैं ॥५२॥ । क्योंकि, सम्यक्त्व, सासादन व सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानोंको प्राप्त हुए भी सातवीं पृथिवीके नारकी जीवोंके मरणकालमें नियमसे मिथ्यात्व उत्पन्न हो जाता है । इसका कारण यह है कि सातवीं पृथिवीमें मरणकालमें उक्त तीनों गुणस्थानोंके अत्यन्ताभावका नियम है।
तिर्यंच जीव कितने ही मिथ्यात्व सहित तियंचगतिमें आकर मिथ्यात्व सहित ही उस गतिसे निकलते हैं ॥ ५३॥
यह सूत्र सुगम है।
कितने ही जीव मिथ्यात्व सहित तियंचगतिमें आकर सासादनसम्यक्त्वके साथ वहांसे निकलते हैं ॥ ५४॥
यह सूत्र भी सुगम है।
१सप्तम्यां नारका मिथ्यात्वेनाधिगता मिथ्यात्वेवैव निर्यान्ति । त. रा. ३, ६.
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