Book Title: Shatkhandagama Pustak 06
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

View full book text
Previous | Next

Page 523
________________ १, ९-९, १३०.] चूलियाए गदियागदियाए तिरिक्खाणं गदीओ [४६३ देवेसु गच्छंता भवणवासियप्पहुडि जाव सदर-सहस्सारकप्पवासियदेवेसु गच्छंति ॥ १२९ ॥ सुगममेदं । तिरिक्खा सम्मामिच्छाइट्ठी संखज्जवस्साउआ सम्मामिच्छत्तगुणेण तिरिक्खा तिरिक्खेसु णो कालं करेंति ॥ १३०॥ कुदो ? सम्मामिच्छत्तगुणम्मि चदुसु वि गदीसु आउकम्मस्स सव्वस्थ बंधाभावा । ण सत्तमपुढवीअसंजदसम्मादिट्ठि-सासणसम्माइट्ठीहि विउचारो', तत्थ वि आउअकम्मस्स तेसिं बंधाभावा । हंदि जिस्से गदीए जम्हि गुणहाणे आउकम्मबंधो देवोंमें जानेवाले संख्यातवर्षायुष्क सासादनसम्यग्दृष्टि तिर्यंच भवनवासी देवोंसे लगाकर शतार-सहस्रार तकके कल्पवासी देवोंमें जाते हैं ॥ १२९ ॥ यह सूत्र सुगम है। तिर्यंच सम्यग्मिथ्यादृष्टी संख्यातवर्षायुष्क तिर्यंच जीव तिर्यंचोंमें सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानके साथ मरण नहीं करते ॥ १३० ॥ क्योंकि, सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानमें चारों ही गतियोंमें आयुकर्मके बंधका सर्वत्र अभाव है । इस कथनसे सप्तम पृथिवीसंबंधी असंयतसम्यग्दृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंसे व्यभिचार भी नहीं उत्पन्न होता, क्योंकि सातवीं पृथिवीमें भी उक्त गुणस्थानवर्ती जीवोंके आयुकर्मके बंधका अभाव है। " जिस गतिमें जिस गुणस्थानमें १ संखेज्जाउवसण्णी सदर-सहस्सारगो ति जायंति। ति. प. ५, ३१३. त एव संशिनो मिथ्यादृष्टयः सासादनसम्यग्दृष्टयश्चाऽऽसहस्रारादुत्पद्यन्ते । त. रा. ४, २१. २ सो संजमं ण गिण्हदि देसजम वा ण बंधदे आउं। सम्मं वा मिच्छं वा पडिवज्जिय मरदि णियमेण ॥ गो. जी. २३. सम्मेव तित्थबंधो आहारदुगं पमादरहिदेसु । मिस्सूणे आउस्स य मिच्छादिसु सेसबंधो दु॥गो. क. ९२. ३ तत्थतणविरदसम्मो मिस्सो मणुवदुगमुच्चयं णियमा। बंधदि गुणपडिवण्णा मरंति मिच्छेच तत्थ भवा ॥ गो. क. ५३९. ४ घम्मे तित्थं बंधदि वंसामेघाण पुण्णगो चेव । छट्ठो ति य मणुवाऊ चरिमे मिच्छेव तिरियाऊ॥ गो. क. १०६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615