Book Title: Shatkhandagama Pustak 06
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ९-८, १४.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए पडिवदणविहाणं
[ ३२७ जादाणि । तदो द्विदिबंधपुधत्तेण ओहिणाणावरणीयं ओहिदसणावरणीयं लाहंतराइयं च संव्वघादीणि जादाणि । तदो द्विदिबंधपुधत्तेण मणपज्जवणाणावरणीयं दाणंतराइयं च अणुभागबंधेण सव्वघादीणि जादाणि । तदो डिदिबंधसहस्सेसु गदेसु असंखेज्जाणं समयपबद्धाणमुदीरणा पडिहम्मदि। समयपबद्धस्स असंखेज्जलोगभागो उदीरणा पवत्तदि। जाधे समयपबद्धस्स असंखेज्जलोगभागो उदीरणा, ताधे मोहणीयस्स ठिदिबंधो थोत्रो । घादिकम्माणं ठिदिवंधो असंखेज्जगुणो । णामा-गोदाणं ठिदिबंधो असंखेज्जगुणो । वेदणीयस्स द्विदिबंधो विसेसाहिओ। एदेण कमेण द्विदिबंधसहस्सेसु गदेसु तदो एक्कसराहेण मोहणीयट्ठिदिबंधो थोवो । णामा-गोदाणं ठिदिबंधो असंखेज्जगुणो । णाणावरणदंसणावरण-अंतराइयाणं तिण्हं पि कम्माणं ठिदिबंधो तुल्लो विसेसाहिओ । वेदणीयस्स ठिदिबंधो विसेसाहिओ । एवं संखेज्जाणि ठिदिबंधसहस्साणि कादण तदो एक्कसराहेण मोहणीयस्स द्विदिबंधो थोयो । णामा गोदाणं ठिदिबंधो असंखेज्जगुणो । णाणावरणीय
ये सर्वघाती हो जाते हैं । पुनः स्थितिवन्धपृथक्त्वसे अवधिज्ञानावरणीय, अवधिदर्शनावरणीय और लाभान्तराय भी सर्वघाती हो जाते हैं। पश्चात् स्थितिवन्धपृथक्त्वसे मनःपर्ययशानावरणीय और दानान्तराय भी अनुभागबन्धसे सर्वघाती हो जाते हैं। तत्पश्चात् स्थितिवन्धसहस्रोंके वीत जानेपर असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणा ना जाती है और समयप्रबद्धके असंख्यात लोकमात्र भागहाररूप, अर्थात् एक समयप्रबद्धके असंख्यातवें भागमात्र, उदारणा होती है। जिस समयमें समयप्रबद्धके असंख्यात लोकमात्र भागहाररूप उदारणा होती है उस समयमें मोहनीयका स्थितिबन्ध स्तोक, घातिया काँका स्थितिबन्ध असंख्यातगणा, नाम व गोत्र काँका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा, और वेदनीयका स्थितिवन्ध विशेष अधिक होता है। इस क्रमसे स्थितिबन्धसहस्रोंके वीत जानेपर पश्चात् एक साथ मोहनीयका स्थितिबन्ध स्तोक, नाम व गोत्र कर्मोंका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा, तथा ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तीनों ही कर्मीका स्थितिवन्ध तुल्य विशेष अधिक होता है । वेदनीयका स्थितिबन्ध विशेष अधिक होता है। इस प्रकार संख्यात स्थितिबन्धसहस्रोंको करके पश्चात् एक साथ मोहनीयका स्थितिबन्ध स्तोक, नाम व गोत्र कमोंका स्थितिवन्ध असंख्यातगुणा, तथा ज्ञानावरणीय,
१ विवरीयं पडिहण्णदि विस्यादीणं च देसघादित्तं । तह य असंखेज्माण उदीरणा समयपबहाणं ॥ लब्धि . ३३२.
२ लोयाणमसंखेजं समयपबद्धस्स होदि पडिभागो। तत्तियमेत्तद्दव्वरसुदीरणा वट्टदे तत्तो॥ लब्धि. ३३३.
३ तक्काले मोहणियं तीसीयं वीसियं च वेयणियं । मोहं वीसिय तीसिय वेयणिय कम हवे तत्तो॥ लन्धि. ३३४.
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