Book Title: Shatkhandagama Pustak 06
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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लिया द्वाणसमुत्तिणे नामं
१, ९–२, ६८. ]
संठाणा वि होता ण णज्जंति त्तिसिद्धं ।
विगलिंदियाणं बंधो उदओ वि दुसरं चैव होदि ति सुत्ते उत्तं । भमरादओ सुसरा विदिस्संति, तदो कधमेदं घडदे ? ण, भमरादिसु कोइलासु व महुरसराणुवलंभा । भिण्णरुचीदो केसि पि जीवाणममहुरो विसरो महुरो व्व रुच्चइ ति तस्स सरस्स महुरतं किष्ण इच्छिज्जदि ? ण एस दोसो, पुरिसिच्छादो वत्थुपरिणामाणुवलंभा । ण च णिंबो केसि पि रुच्चदि ति महुरतं पडिवज्जदे, अव्यवस्थावत्तदो । एत्थ भंगा चवीसा ( २४ ) ।
[ १०९
जीव हुंड संस्थानवाले होते हुए भी आज नहीं जाने जाते हैं, यह बात सिद्ध हुई ।
विशेषार्थ - उक्त कथनका अभिप्राय यह है कि यद्यपि विकलेन्द्रिय जीवोंके एक हुंडकसंस्थान ही माना गया है, तथापि उनमें संभव अवयवोंकी अपेक्षा अन्य भी संस्थान हो सकते हैं, क्योंकि, प्रत्येक अवयवमें भिन्न भिन्न संस्थानका प्रतिनियत स्वरूप माना गया है । किन्तु आज यह उपदेश प्राप्त नहीं है कि उनके किस अवयवमें कौनसा संस्थान किस आकाररूपसे होता है । अतएव विकलेन्द्रिय जीवोंमें अंगोपांगों की संख्या वृद्धि के अनुसार मूल संस्थान एक हुंडकके साथ साथ अवयवसम्बन्धी संस्थानों के द्विसंयोगी, त्रिसंयोगी, चतुःसंयोगी और पंचसंयोगी भेदों के निमित्तसे छद्दों संस्थानोंकी संभावना होने पर भी आगममें इन संयोगी संस्थान -भेदोंकी विवक्षा नहीं की गई है, और इसलिए उनके एक मात्र हुंडकसंस्थान ही बतलाया गया है । द्विसंयोगी आदि भंग के लिए देखो इसी भागके पृष्ठ ७२ परका विशेषार्थ ।
शंका — विकलेन्द्रिय जीवोंके बन्ध भी और उदय भी दुःस्वर प्रकृतिका होता है, यह सूत्र में कहा है । किन्तु भ्रमर आदि कुछ विकलेन्द्रिय जीव सुस्वरवाले भी दिखलाई देते हैं, इसलिए यह बात कैसे घटित होती है कि उनके सुस्वरप्रकृतिका बन्ध या उदय नहीं होता है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, भ्रमर आदि में कोकिलाओंके समान मधुर स्वर नहीं पाया जाता है ।
शंका - भिन्न रुचि होनेसे कितने ही जीवोंके अमधुर स्वर भी मधुरके समान रुचता है । इसलिए उसके, अर्थात् भ्रमरके स्वरके मधुरता क्यों नहीं मान ली जाती है ? समाधान - यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, पुरुषोंकी इच्छासे वस्तुका परिणमन नहीं पाया जाता है | नीम कितने ही जीवोंको रुचता है; इसलिए वह मधुरताको नहीं प्राप्त हो जाता है, क्योंकि, वैसा माननेपर अव्यवस्था प्राप्त होती है ।
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यहांपर तीन जाति, तथा स्थिर, शुभ और यशः कीर्त्ति, इन तीन युगलों के विकल्पसे (३x२x२x२= २४ ) चौवीस भंग होते हैं ।
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