Book Title: Shatkhandagama Pustak 06
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ९-७, २.] चूलियाए जहण्णविदीए संकिलेस-विसोही
[१८१ संकिलेस-विसोहीणं वड्वमाण-हायमाणलक्खणेण भेदो ण विरुज्झदि तिचे ण, वड्डि-हाणिधम्माणं परिणामत्तादो जीवदव्यावट्ठाणाणं परिणामंतरेसु असंभवाणं परिणामलक्खणत्तविरोहादो। ण च कसायबड्डी संकिलेसलक्खणं, द्विदिबंधउड्डीए अण्णहाणुववत्तीदो, विसोहिअद्धाए वड्डमाणकसायस्स वि संकिलेसत्तप्पसंगादो । ण च विसोहिअद्धाए कसाय. उड्डी णत्थि त्ति वोत्तुं जुत्तं, सादादीणं भुजगारबंधाभावप्पसंगा। ण च असाद-सादबंधाणं संकिलेस-विसोहीओ मोत्तूण अण्णकारणमत्थि, अणुवलंभा । ण कसाय उड्डी असादबंध
___ शंका-वर्धमान स्थितिको संक्लेशका तथा हायमान स्थितिको विशुद्धिका लक्षण मान लेनेसे भेद विरोधको नहीं प्राप्त होता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, परिणाम स्वरूप होनेसे जीव द्रव्यमें अवस्थानको प्राप्त और परिणामान्तरों में असंभव ऐसे वृद्धि और हानि, इन दोनों धर्मों के परिणामलक्षणत्वका विरोध है।
विशेषार्थ- यहां शंकाकारका मत यह है कि जघन्यसे उत्कृष्टकी ओर स्थितिबंधके योग्य परिणामको संक्लेश और उत्कृष्टसे जघन्यकी ओर स्थितिबंधके योग्य परिणामको विशुद्धि कहते हैं, इस प्रकार वर्धमान स्थितिबंधको संक्लेश तथा हीयमान स्थितिबंधको विशुद्धिका लक्षण मान लेनेसे कोई विरोध उत्पन्न नहीं होता। किन्तु धवलाकारने इस मतका इस प्रकार निराकरण किया है कि स्थितियोंकी वृद्धि और हानि स्वयं जीवके परिणाम हैं जो क्रमशः संक्लेश और विशुद्धिरूप परिणामकी वृद्धि और हानिसे उत्पन्न होते हैं । और एक परिणाम दूसरे परिणामका लक्षण नहीं बन सकता । अतएव वे संक्लेश और विशुद्धिके लक्षण नहीं माने जा सकते। स्थितियोंकी वृद्धि और हानि तथा संक्लेश और विशुद्धिकी वृद्धि और हानिमें कार्य कारण सम्बन्ध अवश्य है, पर लक्षण-लक्ष्य सम्बन्ध नहीं माना जा सकता ।
कषायकी वृद्धि भी संक्लेशका लक्षण नहीं है, क्योंकि, अन्यथा स्थितिबंधकी वृद्धि बन नहीं सकती है, तथा, विशुद्धिके कालमें वर्धमान कषायवाले जीवके भी संक्लेशत्वका प्रसंग आता है। और, विशुद्धिके काल में कषायोंकी वृद्धि नहीं होती है, ऐसा कहना भी युक्त नहीं है, क्योंकि, वैसा मानने पर साता आदिके भुजाकारबंधके अभावका प्रसंग प्राप्त होगा। तथा, असाता और साता, इन दोनोंके बन्धका संक्लेश और विशुद्धि, इन दोनोंको छोड़कर अन्य कोई कारण नहीं है, क्योंकि, वैसा कोई कारण पाया नहीं जाता है । कषायोंकी वृद्धि केवल असाताके बन्धका कारण नहीं है, क्योंकि, उसके,
__१ अल्पप्रकृतिकं बभन्ननंतरसमये बहुप्रकृतिकं बभाति तदा भुजाकारबन्धः स्यात् ॥ गो. क. ५६९. टीका.
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