Book Title: Shatkhandagama Pustak 06
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
१, ९-१, १४.] चूलियाए पगडिसमुक्त्तिणे सुदणाणावरणीय
[२३ उवरि छवड्डीण संभवाभावा । अक्खरसुदणाणादो उवरिमाणं पदसुदणाणादो हेट्ठिमाणं संखेज्जाणं सुदणाणवियप्पाणमक्खरसमासो ति सण्णा । तदो एगक्खरणाणे वड्डिदे पदं णाम सुदणाणं होदि । कुदो एदस्स पदसण्णा सोलहसयचोत्तीसकोडीओ तेसीदिलक्खा अट्ठहत्तरिसदअट्ठासीदिअक्खरे च घेत्तूण एगं दव्वसुदपदं होदि। एदेहितो उप्पण्णभावसुदं पि उवयारेण पदं ति उच्चदि । एदस्स पदस्स सुदणाणस्सुवरि एगक्खरसुदणाणे वड्डिदे पदसमासो णाम सुदणाणं होदि । एवमेगक्खरादिकमेण पदसमाससुदणाणं वड्डमाणं गच्छदि जाव संघाओ त्ति । संखेज्जेहि पदेहि संघाओ णाम सुदणाणं होदि। चउहि गईहि मग्गणा होदि । तत्थ णिरयगईए जत्तिएहि पदेहि एगपुढवी परूविज्जदि, तत्तियाणं पदाणं तेहिंतो उप्पण्णसुदणाणस्स य संघायसण्णा त्ति उत्तं होदि । एवं सव्वगईओ सव्वमग्गणाओ च अस्सिदूण वत्तव्यं । एदस्सुवरि अक्खरसुदणाणे वड्डिदे संघायसमासो णाम सुदणाणं होदि । एवं संघायसमासो वड्डमाणो गच्छदि जाव एयअक्खरसुदणाणेऊपर छह प्रकारकी वृद्धियोंका होना संभव नहीं है।
अक्षर-श्रुतशानसे उपरिम और पद-श्रुतज्ञानसे अधस्तन श्रुतक्षानके संख्यात विकल्पोंकी 'अक्षरसमास' यह संज्ञा है । इस अक्षरसमास श्रुतज्ञानके ऊपर एक अक्षरशानके बढ़नेपर पदनामका श्रुतज्ञान होता है।
शंका–उक्त प्रकारके इस श्रुतज्ञानकी 'पद' यह संशा कैसे है ?
समाधान-सोलह सौ चौंतीस करोड़, तेरासी लाख, अठत्तहर सौ अठासी (१६३४८३०७८८८) अक्षरोंको लेकर द्रव्यश्रुतका एक पद होता है। इन अक्षरोंसे उत्पन्न हुआ भावश्रुत भी उपचारसे 'पद' ऐसा कहा जाता है । इस पद् नामक श्रुतज्ञानके ऊपर एक अक्षर-प्रमित श्रुतज्ञानके बढ़नेपर पद-समास नामक श्रुतज्ञान होता है । इस प्रकार एक एक अक्षर आदिके क्रमसे पद-समास नामका श्रुतशान बढ़ता हुआ तब तक जाता है जब तक कि सघात नामका श्रुतज्ञान प्राप्त हाता है। इस प्रकार संख्यात पदोंके द्वारा संघात नामक श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है। चारों गतियोंके द्वारा मार्गणा होती है। उनमें जितने पदोंके द्वारा नरकगतिकी एक पृथ्वी निरूपित की जाती है उतने पदोंकी और उनसे उत्पन्न हुए श्रुतज्ञानकी 'संघात' ऐसी संज्ञा होती है। इसी प्रकार सर्व गतियोंका और सर्व मार्गणाओंका आश्रय करके कहना चाहिए । इस संघात श्रुतज्ञानके ऊपर एक अक्षर-प्रमित, श्रुतज्ञानके बढ़नेपर संघातसमास नामक श्रुतज्ञान होता है। इस प्रकार संघात-समास नामक श्रुतज्ञान तब तक
१ एयक्खरादु उवरिं एगेगेणक्खरेण वड्तो। संखेज्जे खलु उड़े पदणाम होदि सुदणाणं ॥ गो.जी. ३३४.
२ सोलससयचउतीसा कोडी तियसीदिलक्खयं चेव । सत्तसहस्साहसया अट्ठासीदी य पदवण्णा ॥ गो. जी. ३३५.
३ एयपदादो उवरिं एगेगेणक्खरेण वडतो । संखेज्जसहस्सपदे उड़े संघादणाम सुदं ॥ गो. जी. ३३६.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org