Book Title: Shatkhandagama Pustak 06
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ९-१, १४. लिंगजत्तादो अवायो सुदणाणमिदि णासंकणिज्ज, अवग्गहिदत्थादो पुधभूदत्थालंबणाए लिंगजणिदबुद्धीए णिण्णयरूवाए सुदणाणत्तब्भुवगमादो । अवाओ पुण अवगहिदत्थविसओ ईहापच्छायदो, तेण सुदणाणं ण होदि । अवग्गहावायाणं णिण्णयत्तं पडि भेदाभावा एयत्तं किण्ण होदि इदि चे, होदु तेण एयत्तं, किंतु अवग्गहो णाम विसयविसइसण्णिवायाणंतरभावी पढमो बोधविसेसो, अवाओ पुण ईहाणंतरकालभावी उप्पण्णसंदेहाभावरूवो, तेण ण दोण्हमेयत्तं ।
निर्णीतस्यार्थस्य कालान्तरे अविस्मृतिर्धारणा' । जत्तो णाणादो कालंतरे वि अविस्सरणहेदुभूदो जीवे संसकारो उप्पज्जदि, तण्णाणं धारणा णाम । ण च ओग्गहादिचउण्हं पि णाणाणं सव्वत्थ कमेण उप्पत्ती, तहाणुवलंभा । तदो कहिं पि ओग्गहो चेय, कहिं पि ओग्गहो ईहा य दो च्चेय', कहिं पि ओग्गहो ईहा अवाओ तिण्णि वि होंति,
शंका--लिंगसे उत्पन्न होनेके कारण अवाय श्रुतज्ञान है ? __ समाधान-ऐसी आशंका नहीं करना चाहिए, क्योंकि, अवग्रहके द्वारा ग्रहण किये गये पदार्थसे पृथग्भूत अर्थका आलम्बन करनेवाली, निर्णयरूप लिंग-जनित बुद्धिको श्रुतज्ञानपना माना गया है । किन्तु अवायज्ञान अवग्रहसे गृहीत पदार्थको ही विषय करता है और ईहाज्ञानके पश्चात् उत्पन्न होता है, इसलिए वह श्रुतशान नहीं हो सकता है।
शंका-अवग्रह और अवाय, इन दोनों शानोंके निर्णयत्वके सम्बन्धमें कोई भेद न होनेसे एकता क्यों नहीं है ?
समाधान-निर्णयत्वके सम्बन्धमें कोई भेद न होनेसे एकता भले ही रही आवे, किन्तु विषय और विषयीके सन्निपातके अनन्तर उत्पन्न होनेवालाप्रथम ज्ञानविशेष अवग्रह है, और ईहाके अनन्तर-कालमें उत्पन्न होनेवाले संदेहके अभावरूप अवायज्ञान होता है, इसलिए अवग्रह और अवाय, इन दोनों शानोंमें एकता नहीं है।
___ अवायज्ञानसे निर्णय किये गये पदार्थका कालान्तरमें विस्मरण न होना धारणा है। जिस ज्ञानसे कालान्तर अर्थात् आगामी कालमें भी अविस्मरणका कारणभूत संस्कार जीवमें उत्पन्न होता है उस ज्ञानका नाम धारणा है । अवग्रह आदि चारों ही ज्ञानोंकी सर्वत्र क्रमसे उत्पत्ति नहीं होती है, क्योंकि, उस प्रकारकी व्यवस्था पाई नहीं जाती है। इसलिए कहीं तो केवल अवग्रह ज्ञान ही होता है; कहीं अवग्रह और ईहा, ये दो ही ज्ञान होते हैं; कहीं पर अवग्रह, ईहा और अवाय, ये तीनों भी ज्ञान होते हैं;
१ अवेतस्य कालान्तरेऽविस्मरणकारणं धारणा । स. सि. १, १५. निर्मातार्थाऽविस्मृतिर्धारणा । त. रा. वा. १, १५, ४. स्मृतिहेतु: सा धारणा | त. श्लो. वा. १, १५, ४.
२ मप्रतौ तदो कहिं पि ओग्गहो चेय । धारणा य दो च्चय कहिं पि ओग्गहो ईहा य ' इति पाठः। अन्यप्रतिषु तदो कम्म पि ओग्गहो धारणा य दो च्चेय । कहिं पि ओम्गहो ईहा य' इति पाठः।
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