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सर्वार्थ सिद्धि
टी का
अ. १
जीवसमास संज्ञा भी कही है । सो इनिके निरूपणाके अर्थ चौदह मार्गणास्थान जानने । तिनिके नाम- गति ४ । इंद्रिय ५ । काय ६ । योग १५ । वेद ३ । कषाय २५ । ज्ञान ८ । संयम ७ । दर्शन ४ । लेश्या ६ । भव्य २ । सम्यक्त्व ६ । संज्ञी २ । आहारक २ | ऐसै ॥
तहां सत्प्ररूपणा दोय प्रकार है । सामान्यकरि, विशेषकरि । तहां सामान्यकरि तौ गुणस्थानविषै कहिये । विशेषaft मार्गणावि कहिये । तहां प्रथम ही सामान्यकरि तौ मिथ्यादृष्टि सत्रूप है । सासादन सम्यग्दृष्टि सत्स्वरूप है । ऐसें चौदहही गुणस्थान सत्स्वरूप कहने । बहुरि विशेषकरि गतिके अनुवादकरि नरकगतिविषै सर्व पृथिवीनिविषै आदिके च्यारि गुणस्थान हैं बहुरि तिर्यच गतिविषै च्यारि आदिके संयतासंयतकरि अधिक ऐसें पांच हैं । मनुष्यगतिfa चौदी हैं । देवगतिविषै नरकवत् च्यारि हैं ॥
बहुरि इंद्रिय अनुवादकारी एकेंद्रियतें लगाय चतुरिंद्रयपर्यंत एक मिथ्यादृष्टिगुणस्थान है । पंचेंद्रियविषै चौदहही है ॥ बहुरि कायके अनुवादकारी पृथिवीकाय आदि वनस्पतिपर्यन्त पांच स्थावरकायविषै एक मिथ्यादृष्टिगुणस्थानही है । कायवि चौदहही हैं ॥
योगकै अनुवादकरि मन वचन काय तीनूंही योगविषै तेरह गुणस्थान हैं । तातें आगें चौदहवा अयोगकेवली मैं योग नांही है ॥
वेदके अनुवादकार तीनूंही वेदनिमैं मिथ्यादृष्टि लगाय अनिवृत्तिवादरतांई नव गुणस्थान हैं । वेदरहित गुणस्थान अनिवृत्तिबादरतें लगाय अयोगकेवलीपर्यत छह गुणस्थान हैं । इहां अनिवृत्ति वादरसांपरायके छह भाग कीये । तहां तीन भाग आदि मैं वेद है । अंतके तीन भाग वेदरहित । तातैं दोऊ जायगा गिण्या ॥
कपायके अनुवादकर कोध-मान- मायाविधै तौ मिथ्यादृष्टि आदि अनिवृत्तिबादरसांपरायतांई नव गुणस्थान हैं । लोभ कपायविषै तेही सूक्ष्मसांपराय अधिक दश गुणस्थान हैं । बहुरि कषायरहित उपशांतकषायतें लगाय अयोगकेवलीतांई च्यारि गुणस्थान हैं |
ज्ञानके अनुवादकार मति - अज्ञान, श्रुत- अज्ञान विभंग इनि तीनविर्षे मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टि हैं । मति श्रुत अवधि इन तीन ज्ञाननिविषै असंयतसम्यग्दृष्टि आदि क्षीणकषायपर्यंत नव गुणस्थान है । मनःपर्यय ज्ञानविर्षे प्रमत्तसंयत आदि क्षीणकषायपर्यत सात गुणस्थान हैं । केवलज्ञानविषै सयोगकेवली अयोगकेवली दोय गुणस्थान हैं ।
संयमके अनुवादकरि संयमी तौ प्रमत्त आदि अयोगकेवलीतांई । तहां सामायिक छेदोपस्थापनशुद्धि संयमी तौ प्रमत्त
व चनिका
ू पान ३३