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सर्वार्थ
सिदि
टीका
म.३
वनस्पतिराशि । बहुरि जीवराशिते अनंतगुणां पुद्गलराशि । बहुरि यातें अनंतानंतगुणां व्यवहारकालका समयनिका राशि । बहुरि याते अनंतानंतगुणां अलोकाकाशके प्रदेशनिका राशि । ऐसें छह राशि मिलाये जो परिमाण होय तिह प्रमाण शलाका विरलन देय तीन राशिकार अनुक्रमतें पूर्वोक्तप्रकार शलाकात्रय निष्ठापन किये जो मध्य अनंतानंतका भेदरूप परिमाण आवै ताकेवि धर्मद्रव्य अधर्मद्रव्यके अगुरुलधुके अविभागप्रतिच्छेदनका परिमाण अनंतानंत है सो जोडिये । यो करिते जो महापरिमाण होय तिस परिमाण शलाका विरलन देय तीन राशिकरि अनुक्रमतें पूर्वोक्तप्रकार शलाकात्रय निष्ठापन करनां जो कोई मध्य अनंतानंतका भेदरूप महापरिमाण होय तिस परिमाणकू केवलज्ञानके अविभागप्रतिच्छेदनिका समूहरूप परिमाणविर्षे घटाइये । पीछे ज्योंका त्यों मिलाइये तब केवलज्ञानका अविभागप्रतिच्छेदनिका प्रमाणस्वरूप
१७५ उत्कृष्ट अनंतानंत होइ । इहां केवलज्ञानके परिमाणमैंसों काढि पीछे मिलावनेका प्रयोजन यहु है जो केवलज्ञानका परिमाण पूर्वोक्त गणनादिकरि जान्यां न जाय तातैं ऐसें जनाया है । ऐसें संख्यामानके इकईस भेद कहे । बहुरि याके विशेष कहनेकू सर्व समविपम आदिके चौदह धारा हैं तिनिका वर्णन त्रिलोकसार ग्रंथतें जाननां ॥
बहुरि उपमाप्रमाण आठ प्रकार है । पल्य सागर सूच्यंगुल प्रतरांगुल धनांगुल जगच्छ्रेणी जगत्प्रतर जगद्धन । तहां । प्रथम तौ योजनके प्रमाणकी उत्पत्ति कहिये है । तहां आदि मध्य अंतकरि रहित ऐसा दूसरा जाका विभाग न होयऐसा अविभागी पुद्गलका परमाणू है सो इंद्रियकरि ग्रया न जाय । जामैं एक रस, एक वर्ण, एक गंध, दोय स्पर्श ए पांच गुण हैं । ऐसें अनंतानंत परमाणूका समूहळू उत्संज्ञासंज्ञ कहिये । ऐसें उत्संज्ञासंज्ञ आठ मिले तब एक संज्ञासंज्ञ कहिये । ऐसे आठ संज्ञासंज्ञ मिले तब एक तुटिरेणु कहिये । आठ तुटिरेणुका एक त्रसरेणु कहिये । आठ त्रसरेणुका एक रथरेणु कहिये । आठ रथरेणुका एक उत्तमभोगभूमिके मनुष्यका बालका अग्रभाग है । आठ उत्तमभोगभूमिके मनुप्यका बालके अग्रभाग मिले तब एक मध्यम भोगभूमिके मनुष्यके बालका अग्रभाग कहिये । आठ ते मिले तब एक जघन्यभोगभूमीका मनुष्यका बालका अग्रभाग है । ते आठ मिले तब कर्मभूमिके मनुष्यका बालका अग्रभाग होय । ते
आठ मिलिये तब एक लीष कहिये । आठ लीष मिले तब एक यूका कहिये । आठ यूका मिले तब एक यवमध्य होय । आठ यवमध्यका एक उत्सेधांगुल कहिये । इस अंगुलकरि नारकी तिर्यंच मनुष्य देवनिका देह तथा अकृत्रिम जिनप्रतिमाका देह मापिये है। बहुरि पांचसै उत्सेधांगुलका एक प्रमाण-अंगुल हो है । लो यह प्रमाण अंगुल अवसर्पिणी कालका पहला चक्रवर्तिका हो है। तिस समय तिस अंगुलकरि गांव नगरादिकका प्रमाण हो है । अन्यकालमै । मनुष्यनिका अपना अपनां अंगुलका प्रमाण होय तिसते ग्रामनगरादिकका प्रमाण जाननां । बहुरि जो प्रमाणांगुल है