Book Title: Sarvarthasiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Shrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan

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Page 403
________________ 161 परिणाम आदि कहिकरि तिनकें परस्पर अर असुरनिकरि किया दुःख है ताकू कहि तिनकी आयुका परिमाण कह्या ।।। आगे सध्यलोकविर्षे जंबूद्वीप आदि द्वीप लवणसमुद्र आदि समुद्र हैं तिनका व्यास आकार कह्या । बहुरि जंबूद्वीपका स्वरूप कहि ताके मध्य क्षेत्र हैं कुलाचलपर्वत हैं तिनका नाम वर्ण आकार कह्या । बहुरि कुलाचलनिउपरि हद हैं तिनके नाम BI सर्वार्थ- १ व्यासादिक बहुरि तिनमें कमल हैं तिनका व्यासादिक बहुरि तिनमें देवी वसे हैं तिनके नाम परिवार आयु कही । आगें । हदनिमेंसूं नदी गंगादि निकली हैं तिनके नाम परिवार गमन कह्या । बहुरि भरतक्षेत्रका विस्तार कहि अन्यका विस्तार वच निका जनाया । बहुरि भरत ऐरावतक्षेत्रमें काल घटै वधै अन्यमें अवस्थित है ऐसें कहिकरि भोगभूमिके जीवनिकी स्थिती कही। पान बहुरि भरतआदि क्षेत्र धातकीखंड पुष्करद्वीपमें हैं सो कहे । मनुष्यक्षेत्रकी मर्यादा कही । कर्मभूमिके क्षेत्र कहे । बहुरि |४०९ मनुष्यतिर्यचनिकी आयुका प्रमाण कहि अध्याय पूर्ण किया ॥३॥ ____ आगें चौथे अध्यायमें ऊर्ध्वलोकका वर्णन है । तामें च्यारिप्रकारके देव कहे । तिनके लेश्या कहि । अर इन्द्र आदि दश भेद कहि । अर इन्द्रनिकी संख्या अर तिनकी कामसेवनकी रीति कहि । बहुरि भवनवासीनिके भेद व्यंतरनिके भेद ज्योतिषीनिके भेद कहे । बहुरि ज्योतिपीनिका गमनका प्रकार अर मनुष्यक्षेत्रविर्षे इनकार कालका विभाग है। मनुष्यक्षेत्रनै परै अवस्थित है ऐसें कह्या । आगे विमानवासी देव तिनवि कल्प कल्पातीतका भेद बहुरि स्वर्गनिका नाम अर तिनके आयु आदि वधते वधते अर गमन आदि घटते घटते उपरि उपरि है सो कहि तिनकी लेश्या कहि । ग्रेवेयक पहली कल्प कहे । बहुरि पांचमां स्वर्गमें लोकांतिक देव हैं तिनके जातिभेदके नाम कहे । बहुरि औपपादिक मनुष्यसिवाय रहे ते जीव सर्व तिर्यच हैं ऐसें कह्या । आगें तिन देवनिकी आयुके निरूपणमें भवनवासीनिकी उत्कृष्टि कहि । अर स्वर्गवासीनिकी उत्कृष्टि जघन्य कही । अर नारकीनिकी जघन्य कही। भवनवासी व्यंतरनिकी जघन्य कही । अर उत्कृष्ट व्यंतर ज्योतिषीनिकी कही । ऐसें चौथा अध्याय पूर्ण किया ॥४॥ आगें पांचमां अध्यायमें अजीवतत्वकू प्रधानकरि निरूपण है । तहां धर्मआदि च्यारि अजीवास्तिकाय कहि । अर जीवास्तिकाय कह्या । तिन पांचनिळू द्रव्य कहे । तिनमें च्यारि अरूपी पुद्गल रूपी अर आकाशताई तीनि एकएक द्रव्य क्रियारहित कहे । धर्म अधर्म एकजीवके असंख्यातप्रदेश कहे । आकाशके अनंत कहे । पुद्गलके स्कंधकी अपेक्षा ती प्रकार है कहे । अणूके प्रदेश नाही, अर आकाशका उपकार, अवगाह, गति, स्थिति, धर्म, अधर्मका उपकार, शरीरादिक जीवकू पुद्गलके उपकार, जीवनिकें परस्पर कालद्रव्यका वर्तना उपकार कह्या । बहुरि पुद्गलके स्पर्शआदि गुण शब्दआदि पर्याय । कहे । अणुस्कंधभेद कहे । बहुरि द्रव्यका सत् सामान्यलक्षण कह्या । नित्यताका स्वरूप कह्या । बहुरि मुख्यगौणकारी ।

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