Book Title: Sarvarthasiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Shrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan

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Page 395
________________ सर्वार्थ टीका पान ३९३ पणाहीसू कार्य है । बहुरि बहुत तीव्र मंद परिणाम नाही होय हैं । बहुरि बकुश प्रतिसेवनाकुशीलके छह भी होय हैं। इहां ।।। अपिशब्दकरि ऐसा जनाया है, जो, अन्य आचार्य तीनि शुभही कहे हैं । बहुरि कषायकुशीलकै कपोततें लगाय शुक्लपर्यंत च्यारि होय हैं । इहां भी अन्य आचार्यनिकी अपेक्षा तीनि जाननी । बहुरि निग्रंथ स्नातककै एक शुक्लही है । लेश्याके स्थानक कषायनिके मंद तीव्र स्थानकनिकी अपेक्षा असंख्यात लोकपरिमाण कहे हैं। सो इनका पलटना सिद्धांतनितें व चसिद्धि निका जानना ॥ बहुरि उपपादपुलाक तो उत्कृष्टपणे उत्कृष्टस्थितीवाले सहस्रारस्वर्गके देव तिनमें उपजै तहां अठारह सागरकी आयु पावें । बहुरि बकुश प्रतिसेवनाकुशील उत्कृष्टपणे आरण अच्युतस्वर्गके देव बाईससागरकी स्थितीवाले तिनमें उपजै म. ९ हैं । बहुरि कषायकुशील निम्रर्थ तेतीस सागरकी स्थितिवाले सर्वार्थसिद्धिके देवनिविर्षे उत्कृष्टपणे उपजै हैं । वहुरि जघन्यकार ए सर्व सौधर्मकल्पवि दोयसागरकी स्थिति पावै हैं । मध्यके नानाभेद यथासंभव जानने । बहुरि स्नातक निर्वाणप्राप्तही होय है ॥ ___ बहुरि स्थान कहिये संयमकी लब्धिके स्थानतें कषायका तीव्रमंदपणा है सो है निमित्त जिनकू ऐसे असंख्यात हैं ।। तहां सर्वजघन्य संयमस्थान पुलाक कषायकुशील. इन दोऊनिकै समान होय ते असंख्यातस्थानताई साथी रहैं, पीछे पुला| कका व्युच्छेद है । याके अगिले स्थान नाहीं अर अगिले स्थान • असंख्यात एक कषायकुशीलकही होय अन्यकै ते । स्थान नाहीं । बहुरि आगें कषायकुशील प्रतिसेवनाकुशील दोऊ असंख्यातस्थानताई लार रहै हैं । दोऊनिके समानस्थान होय है । पीछै प्रतिसेवनाकुशीलका व्युच्छेद है । अगिले स्थान याकै होय नाहीं । आगें असंख्यातस्थान कपाय कुशीलकही होय । ऐसेंही. पीछे कषायकुशीलका व्युच्छेद है । यातें उपरि कषायरहित स्थान हैं ते निग्रंथकही हैं । ते 8 भी स्थान असंख्यात हैं । पीछे निग्रंथका भी व्युच्छेद है । आगें एक स्थान है, सो ताकू पायकरि स्नातक केवली निर्वाणकं प्राप्त होय है। ऐसे ए संयमस्थान हैं । सो अविभागप्रतिच्छेदनिकी अपेक्षा स्थानस्थानप्रति अनंतका गुणाकार है ॥ ऐसें नवमां अध्यायमें संवर निर्जराका स्वरूप अर.तिनके कारणके भेद स्वरूप, अनेकप्रकार गुप्ति समिति धर्म अनुप्रेक्षा परिषहका जीतना, चारित्र तप ऐसे व्याख्यान भया । ताकू भले - प्रकार जानि श्रद्धान कार ३ भव्यजीव हैं ते इनका धारण करौ । मोक्षकी प्राप्तिका यह उपाय है । यामें तत्पर होनायोग्य है। श्रीगुरुनिका ऐसा उपदेश है ॥ . ... .. . . ०००

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