Book Title: Sarvarthasiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Shrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan

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Page 394
________________ ताई है । पांच समिति तीनि गुप्तिका व्याख्यानरूप अधिकार आचारांगमें हैं, तहांताई होय है । बहुरि स्नातक हैं ते | केवली है, तिनकै श्रुत नाहीं है । बहुरि प्रतिसेवनापुलाकके तौ पंचमहाव्रत एक रात्रिभोजनकी त्याग छह व्रतनिमें परके वशतें जवरीते एक व्रत कोईकी विराधना होय है ॥ सर्वार्थ निका पान ३९२ इहां कोई पूछ है, कहा विराधन होय है ? तहां कहिय, जो, महाव्रतकी प्रतिज्ञा मन वचन काय कृत कारित अनुमोदनाकार त्यागरूप है, तातें दोप लागनेके अनेक भंग है । तातें कोई भंगमें परके वशतें विराधना होय जाय है । । यह सामर्थ्यहीनपणाकरि दूपण लागै है । वहुरि बकुश दोयप्रकार है, उपकरणवकुश, शरीरवकुश । तहां उपकरणवकुशकै तो बहुतविशेपनिकरि सहित कमंडलू पीछी पुस्तक बंधन आदि धर्मोपकरणकी अभिलाप हाय तौ यह प्रतिसेवना है । बहुरि शरीरवकुशकै शरीरका संस्कार कदाचित् करै तब प्रतिसेवना है । बहुरि प्रतिसेवनाकुशील मूलगुण तो विराधै नाहीं अर उत्तरगुणनिमें कोईक विराधना लगावै, सौ प्रतिसेवना है। बहुरि कपायकुशील निग्रंथ स्नातकनिकै प्रतिसेवना नाहीं है । जाका त्याग होय ताकू कोई कारणकार ग्रहण करि ले तत्काल सावधान होय फेरि न करै सो प्रतिसेवना कहिये, याकू विराधना भी कहिये । बहुरि तीर्थ कहता सर्व तीर्थकरनिके समयवि सर्वही होय हैं ॥ । बहुरि लिंग दोयप्रकार है, द्रव्यलिंग भावलिंग । तहां भावलिंगकरि तौ पाचूही भावलिंगी हैं, सम्यक्त्वसहित हैं, मुनिपणाखू निरादरभाव काहूकै नाहीं है । बहुरि द्रव्यलिंगकरि तिनमें भेद है । कोई आहार करै है, कोई अनशन आदि तप करै है, कोऊ उपदेश करै है, कोऊ अध्ययन करै है, कोऊ तीर्थविहार करै है, कोऊ ध्यान करै है, ताके अनेक आसन करै हैं, कोऊको दोष लागै है, प्रायश्चित्त ले है, कोऊ दोप नाहीं लगाव है, कोऊ उपाध्याय है, कोऊ प्रवर्तक है, कोऊ निर्यापक है, कोऊ वैयावृत्य करै है, कोऊ ध्यानवि श्रेणीका प्रारंभ करै है, कोऊकौं केवलज्ञान उपजै है, ताकी बाह्य बडी २ विभूतिसहित महिमा होय है इत्यादि मुख्य गौण वाह्यप्रवृत्तिकी अपेक्षा लिंगभेद है । ऐसा न जानना, जो, नग्न दिगंवर यथाजातरूप सामान्य सर्वकै है, तातै भेद है । यह तो सर्वकै समान है ऐसो न । कोई श्वेत पीत रक्त शाम आदि वस्त्र धारै, कोई जटा धारै, कोई कौपीन धारै, कोई दंड धारै, कोई शस्त्र धारै, कोई पालकी चदै, कोई रथ चढे इत्यादिक स्वरूप लिंगभेद नाहीं, ए सर्व अन्यमतीनिके भेद हैं । तथा इस पंचमकालमें जिनमतमें भी जैनाभास भये हैं। तिनमें : भेद पड्या है । यह कालदोष है ॥ बहुरि लेश्या पुलाककै तौ तीनि शुभही होय हैं । जाते याकै बाह्यप्रवृत्तिका आलंबन विशेष नाहीं है। अपने मुनि

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