Book Title: Sarvarthasiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Shrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan

View full book text
Previous | Next

Page 363
________________ सि दि ३५३ ___ आगमकथित शयनतें न चिगौ सो शयनपरिषहका सहन है । तहां वे मुनि ध्यानका गमनका खेदकारी मुहूर्तमात्र । निद्रा ले हैं । सो कठोर नीची उंची बहुत कांकरी ठीकरीनिकार भरी भूमिविर्षे तथा सकडी जहां शरीर स्वच्छंद पसरै नाहीं ऐसी भूमिविर्षे तथा जहां अतिशीतता अतिउष्णता होय ऐसी भूमिप्रदेशविर्षे सोहै हैं । एकपार्श्व किये तथा सूधे सोवै सो प्राणीकुं बाधा होनेकी शंकाकार जैसेंके तैसें सूते रहै । अंगकू चलाचल न करै कलोट न ले । जैसै काठ व च निका पड्या होय तैसें पड़े रहै । तथा जैसैं मृतक पड्या होय तैसैं निश्चल रहै । ज्ञानभावनाविर्षे लगाया है चित्त ज्यां व्यंतर पान आदिके उपसर्ग होते भी नहीं चलाया है शरीर ज्यां, जेते काल नियम किया तेतै काल जेती बाधा आवै तेती सहै हैं, सो शय्यापरिषहका सहन है । याका विशेष जो, भयानक प्रदेशविर्षे शयन करे, तहां ऐसा विचार न उपजै, जो, यह प्रदेश नाहर वघेरा चीता आदि दुष्टप्राणीनिका निवास है, इहति शीघ्र निकलना भला है, रात्रि बहुत बडी है, कदि पूरी होयगी ऐसे विषाद न करै हैं। सुखकी प्राप्ति माहीं वांछै है। पहले कोमलशय्यापरि सोवते थे ताकू यादि न करै हैं ॥११॥ अनिष्ट दुर्वचन सहना, सो आक्रोशपरीषह है। मिथ्यादृष्टीनिके क्रोधके भरे कठोर बाधाके करनहारे निंदा अपमानके झूठे वचन सुनें हैं, “जो ऐसे दुर्वचन हैं तिनकू सुनतेही क्रोधरूप अग्निकी ज्वाला बधि जाय है ऐसे हैं " तौ तिन। वचननिकू झूठे मान हैं। तत्काल ताका इलाज करनेकुं समर्थ हैं. जो आप क्रूरदृष्टीकार भी ताडूं देखें तौ पैला भस्म होय जाय तो अपना पापकर्मके उदयहीकू विचारै तिनकू सुनिकरि तपश्चरणकी भावनाहीकेविर्षे तत्पर हैं, कषायका अंशमात्रकू भी अपने ह्रदयविर्षे अवकाश न दे हैं। ऐसें आक्रोशपरीपहका जीतना होय है ।। १२॥ मारने वालाते क्रोध न करना, सो वधपरिषहका सहन है। तहां तीखण छुरी मूशल मुद्गर आदि शस्त्रनिके घातकार ताडना पीडना आदिते वध्या है शरीर जिनका, बहुरि घात करनेवालेविर्षे किंचिन्मात्र भी विकारपरिणाम नाहीं करै है. विचार हैं “जो यह मेरे पूर्वकर्मका फल है ए देनेवाला गरीब रंक कहा करै ? यह शरीर जलके बुदबुदेकी ज्यौं विनाशिक स्वभाव है, कष्टका कारण है, ताकू ए बाधा करै है, मेरे सम्यग्ज्ञानदर्शनचारत्रकू तौ कोई घात सकै नाही" ऐसा विचार 12 करते रहै हैं । कुहाडी बसोलाकी घात अर चंदनका लेपन दोऊनिकू समान दीखै हैं। तिनके वधपरीषहका सहना मानिये हैं । वे महामुनि ग्राम उद्यान वनी नगरनिविर्षे रात्रिदिन एकाकी नग्न रहे हैं। तहां चोर राक्षस म्लेंछ भील वधिक पूर्वजन्मके वैरी परमती भेषी इत्यादि क्रोधके वशि भये आदि करै हैं। तो तिनके क्षमाही करै है। तिनके वधपरीपहसहना सत्यार्थ है ॥ १३॥ 9 99999999900..... 9 *09 *

Loading...

Page Navigation
1 ... 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407