Book Title: Sarvarthasiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Shrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan

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Page 379
________________ सर्वार्थ वचनि का पान ३६९ इत्यादि जानना । इहां च्यारिप्रकारके मुनिकू संघ कया, तहां ऋषि यति अनगार मुनि ए च्यारि जानने । तहां ऋद्धिधारीफें तो ऋपि कहिये, इन्द्रिय वश करै सो यति कहिये, अवधिमनःपर्ययज्ञानीकू मुनि कहिये, सामान्य घरके त्यागी साधु सो अनगार कहिये । अथवा यति आर्यिका श्रावक श्राविका ऐसैं भी च्यारिप्रकार संघ है । बहुरि मनोज्ञ कह्या, सो जामें पंडितपणाकार कला वक्तापणा आदि गुण. होय, सो लोकविर्षे मान्य होय सो मनोज्ञ है। तथा ऐसा सिद्धि अविरतसम्यग्दृष्टि होय, जामें मार्ग● ऊंचो दिखाबनेके गुण होय, ताळू भी मनोज्ञ कहिये है॥ आगें स्वाध्यायके भेद अ. ९ जाननेकू सूत्र कहै हैं ॥ वाचनापृच्छनानुप्रेक्षाम्नायधर्मोपदेशाः ॥ २५॥ याका अर्थ- वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय, धर्मोपदेश ए पांच स्वाध्यायतपके भेद हैं । तहां निर्दोष ग्रंथ अर्थ उभय उनका जो भव्यजीवनिकू देना शिखावना सो तो वाचना है । बहुरि संशयके दूर करनेकू निर्बाध निश्चयके १ समर्थनिकू दृढ करनेकू परकू ग्रंथका अर्थ दोऊका प्रश्न करना, सो पृच्छना है। जो आपकी उच्चताकार प्रार्थि परके ठगनेके आर्थ नीचा पाडनेके अर्थि परकी हास्य करनेकू इत्यादि खोटे आशयसूं पूछ सो पृच्छना तप नाही हैं । बहुरि जिस पदार्थका स्वरूप जान्या, ताका मनकेविर्षे बारबार चितवन करना, सो अनुप्रेक्षा है । बहुरि पाठकू शुद्ध घोखना, सो आम्नय है । बहुरि धर्मकथा आदिका अंगीकार, सो धर्मोपदेश है । ऐसें पांच प्रकारका स्वाध्याय है । याका फल प्रज्ञाका तौ अतिशय होय, प्रशस्त आशय होय, परमसंवेग होय, तपकी वृद्धि होय, अतीचारका शोधन होय इत्यादिक याके प्रयोजन हैं । तथा संशयका नाश होय, मार्गकी दृढता होय, परवादीकी आशंकाका अभाव होय, ए फल हैं ॥ आगें व्युत्सर्गतपके भेदके निर्णयके अर्थि सूत्र कहै हैं ॥ बाह्याभ्यन्तरोपध्योः ॥ २६ ॥ • याका अर्थ- बाह्य अभ्यंतर ऐसें दोयप्रकारका परिग्रहका त्याग ए व्युत्सर्गके दोय भेद हैं। तहां व्युत्सर्ग नाम त्यागका है, सो दोयप्रकार है, बाह्य उपाधिका त्याग, अभ्यंतर उपाधिका त्याग । तहां अनुपात्तवस्तु जो आपते न्यारा धनधान्यादिक, सो तौ बाह्यपारग्रह है । बहुरि कर्मके निमित्ततें भये आत्माके भाव जे क्रोधआदिक, ते अभ्यंतर परिग्रह ॥ हैं । बहुरि कायका भी त्याग या अभ्यंतरमें गिणना । सो कालका नियमकार भी होय है, अर यावज्जीव भी होय है।

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