Book Title: Sarvarthasiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Shrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan

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Page 329
________________ सर्वार्थ सित्रि टीका अ. ८ संहनन है । बहुरि जानें वज्रमयी हाड संधिके तथा बडे कीला होय सो वज्रमयी वलयबंधनकरि रहित होय सो वज्रनाराच संहनन है । बहुरि जामें हाड तथा संधिनके कीला तौ होय परंतु वज्रमयी न होय अर वज्रमयी वलयबंधन भी न होय, सो नाराचसंहनन है । बहुरि जामें हाडनकी संधिके कीला एकतरफ तौ होय दूसरी तरफ न होय, सो अर्धनाराचसंहनन है । वहुरि हाडनिकी संधि छोटी कीलनिकरि सहित होय, सो कीलकसंहनन है । बहुरि जामें हाडनिकी संधिमें अंतर होय चौगिरद वडी नस छोटी नस लिपटी होय मांसकरि भन्या होय, सो असंप्राप्तासृपाटिकासंहनन है । ऐसें छह भये ॥ बहुरि जा उदय स्पर्श निपजै, सो स्पर्शनाम है । सो आठप्रकार है, कर्कश मृदु गुरु लघु स्निग्धं रूक्ष शीत उष्ण ऐसें । बहुरि जाके उदयतें रस निपजै, सो रसनाम है । सो पांच प्रकार है, तिक्त कटुक कषाय आम्ल मधुर ऐसें । बहारे जाके उदय गंध उपजै, सो गंधनाम है। सो दोयप्रकार है, सुरभि असुरभि । बहुरि जाके उदयतें वर्ण निपजै, सो वर्णनाम है । ताके पांच भेद हैं, कृष्ण नील रक्त पीत शुक्ल ऐसैं । बहुरि जाके उदयतें पहला शरीरका आकार aण्या रहै नवा शरीरकी वर्गणा ग्रहण न करें, जे आनुपूर्व्यनाम है । याका उदय उत्कृष्ट तीनि समय विग्रहगतिमें रहै है । सो च्यारि प्रकार है, नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्व्य, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्व्य, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्व्य, देवगति प्रायोग्यानुपूर्व्यं ॥ 1 बहुरि जाके उदयतें लोहके पिंडकी ज्यों भाया होयकार तलै गिरि पडै तथा आकके फूफदाकेज्यों हलका होयकारी ऊपर उडि जाय नाहीं, सो अगुरुलघुनाम है । यह कर्मकी प्रकृति है सो शरीरसंबंधी जाननी । जो अगुरुलघुनामा स्वाभाविक द्रव्यका गुण है, सो याकूं न जानना । बहुरि जाके उदयतैं अपना घात आपकरि होय, सो उपघातनाम बहुरि जाके उदयतें अपना घात परकार होय, सो परघातनाम है बहुरि जाके उदयतें आतपमय शरीर पावै, सो आतप नाम है । यहू सूर्यके विमानविषै पृथ्वीकायिक जीवनिकै वर्ते है बहुरि जाके उदयतें शरीर उद्योतरूप पाँवै सो उद्योतनाम है । सो यहू चंद्रमा के विमानके पृथ्वीकायिकजीवनिकै तथा आग्या आदि जीवनिकै उदय होय है । बहुरि जाके उदयतें उच्छ्वास आवै, सो उच्छ्वासनाम है ॥ । । बहुरि जाके उदय आकाशविषै गमनका विशेप होय, सो विहायोगतिनाम है । इहां विहाय ऐसा नाम आकाशका हैं, यहू दोयप्रकार है, प्रशस्त अप्रशस्त, याकूं शुभचालि अशुभचालि कहिये । सो जीवकै कर्मके उदयतें एक आत्माका भोगिये ऐसी बुरी भली चाल जाननी । जो क्रियावान् द्रव्यके स्वभावहीकरि गमन होय सो नाहीं लेना । बहुरि जाके उदय एक आत्माकारही भोगिये ऐसा शरीर पावै, सो प्रत्येकनाम है । बहुरि जाके उदयतें बहुतजीवनिका भोगनेका T वच निका पान ३१७

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