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सर्वार्थ-श थारे थोरे
वच
टीका
पान
अ४
१९२
। बहुरि अनुत्तरविर्षे एक हाथ है । बहुरि परिग्रह विमान देवांगना आदि परिवार इत्यादिका उपरि उपार घटता घटता
है । बहुरि उपरि कपाय थोरे हैं । ताते अभिमान घटता घटता है । इहां स्वर्गनिमें उपजें हैं, तिनके कषायनिकी मंदता बढती बढती होय, ते उपरि उपरि उपजे हैं । तातें सोही संस्कार वहां है। तातें उपरि उपरि कषाय
थोरे थोरे हैं ॥ सिद्धि ___आगें, तीनि निकायनिके तो लेश्या पहली कही थी । अब वैमानिकनिके लेश्याकी विधिप्रतिपत्तिके अर्थि सूत्र कहै हैं-18/ निका
॥ पीतपद्मशुक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु ॥ २२ ॥ याका अर्थ- दोय युगलनिमें पीतलेश्या, तीनि युगलनिमें पद्मलेश्या, बहुरि बाकी तीनि युगल तथा अहमिन्द्रनिकै शुक्ललेश्या है। यहां पहले पीत पद्म शुक्लका द्वंद्वसमास करि पीछे ए लेश्या जिनके होय ते पीत पद्म शुक्ललेश्यावाले देव हैं, ऐसे बहुव्रीहिसमास है । इहां प्रश्न, जो, इहा समासवि पीत पद्म शुक्ल इनके -हस्व अकार कैसे भया ? शब्द तौ पीता पद्मा शुक्ला ऐसा चाहिये । तहां कहिये है, जो व्याकरणवि उत्तरपदतें -हस्व होना भी कया है । जैमें दुती ऐसा शब्दका तपरकरणवि है । तहां मध्याविलंबिताका उपसंख्यान है, ऐसे इहां भी जानना । अथवा पीत पद्म शुक्ल ऐसे शब्द वर्णसहित वस्तुके वाचक भी हैं, ते पुरुपलिंगी हैं । तिनिकी उपमा भी इन लेश्यानिकू है । तातें उपमितिसमासवि -हस्व हैही ॥
ऐसें कोनकें कैसी लेश्या है, सो कहिये है- सौधर्म ऐशानके देवनिकै तौ पीतलेश्या है, ताके मध्यम अंश है । सानत्कुमार माहेन्द्रके देवनिकै पीतलेश्या है, तथा तहां पद्म भी । ब्रह्मलोक ब्रह्मोत्तर लातव कापिष्ट शुक्र महाशुक्र इन तीनि युगलनिवि पद्मलेश्या मध्यम अंश है । शतार सहस्रारवि पद्मलेश्या तथा शुक्लेश्या है । आनतआदि अनुत्तरपर्यंत तेरह स्थाननिविर्षे शुक्ललेश्या है। तहां भी अनुदिश अनुत्तरवि परमशुक्ललेश्या जाननी । इहा प्रश्न, जो, सानत्कुमार माहेन्द्रवि पीत पद्म दोऊ कही । तथा शतार सहस्रारवि पद्म शुक्ल दोऊ कही । सो सूत्रवि तो एक एकही कही है, दोऊं कैसें कहाँ हो ? ताका समाधान- जो, इहां साहचर्यते मुख्य है, तार्क सूत्रमें कही है । ताकी साथी गौणका भी ग्रहण करना । जैसे लौकिकमें राजादिक छत्रधारी गमन करे, तिनकी साथि अन्य भी जाय है । तहां कोई पूछे कौन जाय है ? तहा कहै छत्रधारी जाय है । तहां जे विना छत्रवाले साथी हैं, ते भी जानि लेने । तैसें इहां मुख्यके कहेही गौणका ग्रहण किया है । तहा यह अर्थ सूत्रतें ऐसें जानना, जो, दोय युगलम पीतलेश्या कही तहां दूसरे युगलमें