Book Title: Sarvarthasiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Shrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan

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Page 300
________________ सर्वाय वच निका पान . ठिकाण जिनकू अनंतकाय कहिये ते सर्वही त्याग करने । जाते ‘इनमें घात तो बहुतजीवनिका है अर फल अल्प हैकिंचित् स्वादमात्र फल है । बहार यान वाहन आभरण आदिकवि मेरै एता इष्ट है, इससिवाय अनिष्ट है ताका त्याग है, ऐसें इह अनिष्टत्याग कहिये । बहुरि कालके नियमकरि यावज्जीव यथाशक्ति इष्टवस्तुविर्षे भी सेवनेयोग्य नाही तिनका त्याग करना, सो अनुपसेव्यत्याग कहिये ॥ सिद्धि बहुरि जो संयमकू पालता संता अतति कहिये विहार करै सो अतिथि कहिये अथवा जाकै तिथि नाहीं होय टीका । सो अतिथि कहिये, जो पडिवा दोयज आदि तिथिरूप कालके नियम विना आहारकू आवै सो अतिथि है, ऐसा अर्थ 1।है । ऐसें अतिथिके अर्थि संविभाग कहिये अपने भोजनवस्तुवि विभाग देना, सो च्यारिप्रकार है । भिक्षा उपकरण औषध वसतिका । तहां मोक्षके अर्थि उद्यमी संयमीवि तत्पर प्रवीण शुद्धआचारी जो अतिथि ताकै अर्थि शुद्धमनकार निर्दोष भिक्षा भोजन आहार देना । बहुरि धर्मके उपकरण सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रके बधावनेवाले देने । बहुरि औषध भी योग्य देनी । बहुरि परमधर्मकी श्रद्धाकरि वसतिका भी बनावणी । बहुरि सूत्रमें चशब्द है सो आर्गे कहसी जो गृहस्थधर्म ताके समुच्चयके अर्थि है ॥ A इहां ऐसा भी विशेष जानना, जो, ग्यारह प्रतिमाके अनुक्रममें दूजी व्रतप्रतिमा है तामैं पंचअणुव्रतके अतीचार तौ सोधैही हैं । बहुरि ए सप्तशील कहे तिनका आचरण यथाशक्ति है तिनमें अतीचार भी लागै हैं । बहुरि तीजी प्रतिमा सामायिक नाम है, तहां सामायिक अतीचाररहित पलै है । बहुरि चौथी प्रतिमा प्रोपधोपवास नामा है, तहां प्रोषधोपवास अतीचाररहित पलै है । बहुरि पांचमी प्रतिमा सचित्तत्याग नाम है, तहां उपभोगपरिमाण नामा शील है ताके अतीचार सोधै है । तहां सचित्तका भक्षणका तो त्यागही करै है, बहुरि अन्यकार्य भी सचित्तसूं यत्नर्पूवक करै है। इहां सतरह नियमकी प्रवृत्ति अवश्य होय है । बहुरि छठी प्रतिमा रात्रिभोजनका त्याग दिवा स्त्रीसेवनका त्याग है, सो यह भी उपभोगपरिभोगके परिमाणके अतीचार सोधनेहीका विशेष है । तहांताई जघन्यश्रावक कहिये ॥ बहुरि सातमी प्रतिमा ब्रह्मचर्य है । सो इहां स्त्रस्त्रीका भी त्याग नववाडसहित शुद्ध अतीचाररहित होय है । बहुरि आठमी प्रतिमा आरंभत्याग है । तहां वणिज आदि आरंभका कछू कुटुंब सामिल रहनेमें दोप अतीचार उपजै तथा | ताका भी अतीचाररहित शुद्ध त्याग होय है । बहुरि नवमी प्रतिमा परिग्रहत्याग है । तहां पहलै कछु अल्पपरिग्रह रुपया पईसासंबंधी ममत्व था तिसका भी इहां त्याग है अतीचार न लगावै है । इहांताई मध्यमश्रावक है । बहुरि | दशमी प्रतिमा अनुमतित्याग है, सो नवमीमें कुटुंब सामिल भोजनादिक करै था, तामैं भला माननेका दोष उपजै था,

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