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कायके अनुवादकरि पृथिवीकायिक आदि वनस्पतिपर्यतका सर्वलोक क्षेत्र है। त्रसकायिकका पंचेंद्रियवत् क्षेत्र है।
योगका अनुवादकार वचन मनोयोगवाले मिथ्यादृष्टि आदि सयोगकेवलीपर्यतनिका लोककै असंख्यातवा भाग है। काययोगीनिका मिथ्यादृष्टि आदि सयोगकेवलीपर्यतनिका अर अयोगकेवलीनिका गुणस्थानवत् क्षेत्र है । वेदके अनुवादकरि स्त्रीपुरुपवेदीनिका मिथ्यादृष्टि आदि अनिवृत्तिवादरपर्यंतनिका लोकके असंख्यातवा भाग है। नपुंसकवेदनिका मिथ्यादृष्टि आदि अनिवृत्तिवादरपर्यंतनिका अरु वेदरहितनिका गुणस्थानवत् क्षेत्र है ॥
कपायके अनुवादकार क्रोध मान माया कपायवालेनिका अर लोभ कपायवालेनिका मिथ्यादृष्टि आदि अनिवृत्तिवादरपर्यंतनिका अर सूक्ष्मसांपरायीनिका अर कपायरहितनिका गुणस्थानवत् क्षेत्र है ॥ का ज्ञानके अनुवादकरि मतिअज्ञान श्रुतअज्ञानवालेनिका मिथ्यादष्टि सासादनसम्यग्दृष्टिवालेनिका गुणस्थानवत् क्षेत्र है। विभंगज्ञानीनिका मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टिनिका लोकका असंख्यातवा भाग है। मति-श्रुत-अवधिज्ञानीनिका असंयतसम्यग्दृष्टि आदि क्षीणकपायपर्यंतनिका अर मनःपर्ययज्ञानीनिका प्रमत्तसंयत आदि क्षीणकपायपर्यतनिका अर केवलज्ञानी अयोगीनिका गुणस्थानवत् क्षेत्र है।
संयमके अनुवादकार सामायिक च्छेदोपस्थापनशुद्धि संयतनिका च्यारि गुणस्थाननिका अर परिहारविशुद्धिसंयत प्रमत्त अप्रमत्तनिका अर सूक्ष्मसांपराय शुद्धसंयतनिका अर यथाख्यात विहारशुद्धसंयतका च्यारि गुणस्थाननिका अर संयतासंयतका अर असंयतके च्यारि गुणस्थाननिका गुणस्थानवत् क्षेत्र है ।।
दर्शनके अनुवादकरि चक्षुर्दर्शनवालेनिका मिथ्यादृष्टि आदि क्षीणकपायपर्यंतनिका लोकका असंख्यातवा भाग है । अचादर्शनवालेनिका मिथ्यादृष्टि आदि क्षीणकपायपर्यतनिका गुणस्थानवत् क्षेत्र है । अवधिदर्शनवालेनिका अवधिज्ञानीवत् है। केवलदर्शनवालेनिका केवलज्ञानीवत् है ॥
लेण्याके अनुवादकरि कृष्ण-नील-कापोतलेश्यावालेनिका मिथ्यादृष्टि आदि असंयतसम्यग्दृष्टिपर्यतनिका गुणस्थानवत् क्षेत्र है। पीत - पद्मलेश्यावालेनिका मिथ्यादृष्टि आदि अप्रमत्तसंयतपयंतनिका लोकका असंख्यातवा भाग है। शुक्ललेश्याबालेनिका मिथ्यादृष्टि आदि क्षीणकपायपर्यतनिका लोकका असंख्यातवा भाग है । सयोगकेवलीनिका अर लेश्यारहित अयोगकेवलीनिका गुणस्थानवत् क्षेत्र है ॥
भव्यके अनुवादकरि भव्यनिका चौदहही गुणस्थानका सामान्योक्त कहिये गुणस्थानवत् क्षेत्र है । अभव्यनिका सर्वलोक है ॥