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सर्वार्थ
सिद्धि
पान
15 परिमाणकू लीये उपजै ताते वधै भी घटे भी जैसे पवनके वेगकार प्रेन्या जलका लहरी घटै वध, तैसें यह अवधि | अनवीस्थत कहिये । ऐसें यह अवधि छह प्रकार हो है ॥
बहुरि श्लोकवार्तिकमैं याका ऐसा व्याख्यान है- जो अवधिज्ञानावरण क्षयोपशम तौ अंतरंग कारण है । सो दोऊ प्रकारकी अवधिमै पाईये है। याविना तौ अवधिज्ञान उपजैही नांही। तातें यहां वाह्यनिमित्तकी अपेक्षा कथन कीजिये।
वचतव भवप्रत्ययकू तो प्रधानकारण भवही है । बहुरि यह क्षयोपशमानिमित्तक कह्या ताळू गुणप्रत्यय भी कहिये। तहां निका टीका
क्षयोपशमशब्दकरि चारित्रमोहके क्षयतें भया जो क्षायिकचारित्र बहुरि चारित्रमोहके उपशमतें भया उपशमचारित्र, वहुरि दोऊतै भया अयोपशमचारित्र यामैं संयमासंयम भी आय गया। ऐसे तीन प्रकार चारित्र नामा गुण जो वाह्यनिमित्त । ८४ ताते उपजै सो क्षयोपशमनिमित्तक कहिये । ऐसा व्याख्यान है । बहुरि आगमवि4 सप्रतिपात अप्रतिपात तथा देशावधि परमावधि सर्वावधि ए सर्व अनुगामी आदि छह भेद कहे तिनमैं अंतर्भूत जानने ॥ तहां देशावधि तौ अनुगामी भी बहुरि अननुगामी भी है। बहुरि परमावधि सर्वावधि केवलज्ञान उपजै तहातांई अनुगामीही है । बहुरि देशावधि तौ वर्धमान भी है हीयमान भी है । बहुरि परमावधि वर्धमानही है । बहुरि देशावधि तौ अनवस्थितही है । या प्रकार अवविज्ञान तो कह्या ॥
बहुरि ताके लगताही मनःपर्ययज्ञान कहनेयोग्य है, ताके भेदसहित लक्षणका कहनेका इच्छक आचार्य सूत्र कहै हैं--
॥ ऋजुविपुलमती मनःपर्ययः ॥ २३ ॥ याका अर्थ- ऋजुमति तथा विपुलमति ऐसै दोय भेदरूप मनःपर्ययज्ञान है ॥ ऋज्वी कहिये सरल तथा वचन काय मनकरि कीया अरु परके मनवि प्राप्त भया ऐसा जो पदार्थ ताके जाननेते निपजाई जो मति कहिये ज्ञान जाकै होय, ता· ऋजुमति कहिये । बहुरि विपुला कहिये वक्र तथा वचन काय मनकरि कीया अरु परके मनविर्षे प्राप्त भया जो पदार्थ ताकरि नाही निपजाई स्वयमेवही भई ऐसी जो मति कहिये ज्ञान जाकै होय, ताकू विपुलमति कहिये । याका समासकरि ऋजुविपुलमती ऐसा द्विवचन किया है ॥ तहां मतिशब्द एकहीकरि अर्थ आय गया । तातें दूसरा मतिशब्द न कह्या । अथवा ऐसा भी समास होय है ऋजु बहुरि विपुल ए दोऊही मति है । तातें दोऊही जहां होय ते दोऊही ऋजुविपुलमती है । ऐसें कहनेते यहु मनःपर्ययज्ञान दोय प्रकार भया ऋजुमति