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निका
15 पुरुषलिंगी है । तातें स्वतत्त्वकै भी पुरुषलिंग चाहिये । तथा भावनिकी संख्या बहुत है, तातें स्वतत्त्वकै बहुवचन चाहिये । ताकू कहिये स्वतत्त्वशब्द है सो उपात्तलिंग संख्यारूप है याका लिंग पलट नाही । तथा तत्त्वशब्द भाववाची
एकही वचन होय है । जाते तस्य भावस्तत्त्वं ऐसा है, तात संख्या भी पलटे नाही तात दोष । नाही । बहुरि इहां ऐसा विशेप जानना, जो, जीवके पांच भाव कहे ताते चैतन्यमात्रही नाही है । सांख्यमती पुरु
वच| षका स्वचैतन्यमात्र माने है । बहुरि बुध्यादिक विशेषगुणका भी वैशेषिक मतवाला पुरुपकै अभाव माने है । बहुरि टी का वेदांतमती आनंदमात्र ब्रह्मस्वरूप मान है । बौद्धमती चित्कू प्रभाकर मात्र मानै है । सो सर्वथा एकांततें यहु बणै ।। 1 नांही । पंचभावरूपही जीवका स्वरूप प्रमाणसिद्ध है ऐसा जाननां ॥
११० आर्गे शिष्य पूछ है, तिस आत्माके पांच औपशमिकादिक भाव कहे ते कहा उत्तरभेदसहित है कि अभेदरूप है ? ऐसे पूछ उत्तर कया, जो, भेदसहित है । फेरि पूछै, जो, ऐसे है तौ तिनिके भेद कहो । ऐसें पूछे | आचार्य सूत्र कहै हैं
पान
॥ द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम् ॥ २ ॥ याका अर्थ- पहले सूत्र में पांच भाव कहै हैं । तिनके अनुक्रमते दोय नव अठारह इकईस तीन ए भेद हैं ॥ तहा दोय आदिक सख्याशब्दनिका द्वंद्वसमासकरि अरु भेदशब्दकै स्वपदार्थवृत्ति तथा अन्यपदार्थवृत्ति जाननी । कैसै । सोही कहिये है । दोय बहुरि नव बहुरि अठारह बहुरि इकईस बहुरि तीन ऐसै तौ द्वंद्ववृत्ति भई । बहुरि तेही भेद ऐसे स्वपदार्थवृत्ति भई । ए कहे तेही भेद हैं । ऐसे भेदशब्द संख्याहीका संबंधी भया । तब ऐस संबंध होय पांचौं भावनिका बहुवचन पष्ठीविभक्ति करि कहनां, जो, ये भेद पांच भावनिके है । बहुरि ते हैं भेद जिनके इहां अन्यपदार्थवृत्ति भई । जाते ए भेद पूर्वोक्त भावनिके हैं । तहा विभक्ति भावनिके सूत्रमें कही सोही रही । बहुरि । यहां यथाक्रम ऐसा वचन है सो यथासंख्यके जानने अर्थि है। बहुरि भेदका न्यारा न्यारा संबंध करणा। ताते
औपशमिक दोय भेदरूप है। क्षायिक नव भेदरूप है। मिश्र अठारह भेदरूप है। औदयिक इकईस भेदरूप है। पारिणामिक तीन भेदरूप है । ऐसें जानिये है ॥ ___ आगे शिष्य पूछ है, जो, ऐसे है तो औपशमिकके दोय भेद कौनसे हैं ? ऐसे पूछ सूत्र कहै है