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सर्वार्थ
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Bा तहां ज्ञानावरणीयकर्मका उदयका अभावते भया जो आत्माकै अक्षरके ग्रहण करणेकी तथा कहनेकी शक्ति ता• तौ |
लब्धि कहिये, ताका सूक्ष्मा नाम किया । बहुरि तिस लब्धिकै अनुसारी व्यक्तिरूप भया जो अक्षरके ग्रहण करणेरूप तथा कहनेरूप द्रव्यवचनकू कारण जो भाव ताळू उपयोग कहिये ताका नाम पश्यंती किया । सो ए दोऊ आत्माके परिणाम हैं । शब्दरूप पुद्गल नाही; शब्दकू निमित्त है । सो इस लब्धि तथा उपयोगकू चिद्रूपसामान्य
विचसिद्धि
ग्रहणकरि अक्षररूप नाम कहनेकै पहली तौ मतिज्ञानही कहिये । सो तौ वचनपूर्वक नाही प्रवर्ते है । बहुरि वचन-1 निका टीका पूर्वक जो प्रवर्ते सो इरुतज्ञान है सो वचनपूर्वकही कहिये । ऐसें कहनेते सर्व जघन्य तौ लब्धाक्षरज्ञान ताके भी ।
श्रुतज्ञानपणां सिद्ध होय है । सो स्पर्शन इंद्रियतें भया जो मतिज्ञान तिसपूर्वक होय है। ऐसे मतिपूर्वक श्रुतः ।। कहनेमैं विरोध नाही है ॥ ____ बहुरि अन्यवादी उपमानप्रमाण जुदा कहै हैं । सो भी इस श्रुतप्रमाण ही अंतर्भूत होय है । सोही कहिये हैं। प्रसिद्ध समानधर्मपणांतें जो साध्यवस्तुको साधिये, ताळू उपमान कहिये । जैसे गऊसारिखा यह गवय है । तथा वैध
यंतें भी होय है, जैसे जो महिष है सो गऊ नाही है । ऐसें साधर्म्यवैधर्म्यकरि जो संज्ञासंज्ञिसंबंधकी प्राप्ति सो उपमानका अर्थ है । सो ऐसे या शब्दप्रमाणते न्यारा कहै है । तिनिकै दोय आदि संख्याका ज्ञान भी न्यारा प्रमाण ठहरैगा । तथा उपरिले नीचलेका ज्ञान तौ सोपान केवि, तथा पर्वतादिवि थिरताका ज्ञान, अपने वंशादिविर्षे महान्पणैका ज्ञान, चंद्रमासूर्यादिवि दूरवर्तीपणाका ज्ञान सरसूं आदिविर्षे छोटापणाका ज्ञान, रुई आदिवि हलकापणाका ज्ञान, अपना घर आदिवि निकटवर्तीपणांका ज्ञान, त्रिकूटाचोकूटा आदिवि आकारका ज्ञान, कोईवि4 वक्रपणादिका ज्ञान, ए सर्व न्यारे प्रमाण ठहरेंगे । तब आप मानी जो प्रमाणकी संख्या ताका विघटन होगा । तातें जो संज्ञासंशिसंबंधते पदार्थका ज्ञान होय है सो सर्व आप्तके उपदेशपूर्वक है। तातें आगमप्रमाणमैं अंतर्भूत होय है । ऐसेंही अन्य भी उदाहरण हैं।
' जैसे सिंहासनपरि बैठा होय सो राजा होय । सुवर्णके सिंहासनपरि बैठी पट्टराणी होय । इस तरफ बैठा होय सो । मंत्री होय । यहु यातै पूर्वदिसाकी . तरफ है । यह यातें दक्षिणदिसाकी तरफ है । यहु यातें उत्तरदिसाकी तरफ है । याका यहु नाम है इत्यादि वाक्य पूर्व सुणे थे । ताका संस्कार फेरि इनको देखे तब राजादिकका ज्ञान होय । बहुरि षण्मुख स्वामिकार्तिकेय है, ब्रह्मा चतुर्मुख है। ऊंची नासिकावाला सुखदेव है। दूधजलकुं न्यारा करनेवाला जा चूंच है सो हंस है । सातपत्रवाला अशोकवृक्ष है ऐसे वाक्यनितें यथार्थकी प्राप्ति सो भी आगम है । तथा रूपकादि अलंकारनिते