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Ta करि पाया जो क्षयोपशम तातै पहले समय जैसा अवग्रह भया तैसाही द्वितीयादिक समयनिवि होय है कछु कम भी 11'
नाही होय अरु अधिक भी नाही होय है ताकू तौ ध्रुवावग्रह काहिये । तथा शुद्धपरिणामका अरु संक्लेशपरिणामका मिश्रपणां मिलापते क्षयोपशम होय है। ताते उपज्या जो अवग्रह सो कोई कालविर्षे बहुतका होय । कोई कालविर्षे अल्पका होय । कोई कालविर्षे बहुविधका होय । कोई कालविर्षे एकविधका होय । ऐसे हीन अधिकपणातें अध्रुव अवग्रह होय
वचहै । बहुरि धारणा है जो जा पदार्थकू ग्रह्या ताकू नाही भूलनेका कारण रूप ज्ञान है । ऐसै इनि दोऊनिका बडा अंतर सिद्धि
निका है ॥ ऐसै अवग्रहादिक बहु आदिक पदार्थानका होय है सो सत्यार्थ निर्बाध प्रमाण स्याद्वादमतविर्षे सिद्ध होय है । जे पान अ.110 सर्वथा एकांतवादी हैं तिनिकै ए ज्ञानके भेद तथा पदार्थके भेद संभवै नांही ॥
७३ आगैं, जो ए अवग्रहादिक बहु आदिकके जाननेवाले हैं, तथापि बहु आदिक किसके विशेप हैं ? ऐसा प्रश्न R होते सूत्र कहै हैं
सर्वार्थ
टीका
॥ अर्थस्य ॥ १७॥ . याका अर्थ- ए बहु आदिक बारह हैं । ते अर्थक विशेषण हैं ॥ नेत्रादिक इंद्रियनिका विषय है सो तौ अर्थ है, ४ ताके बहु आदि विशेषण हैं । इनिकरि विशिष्ट जो अर्थ कहिये वस्तु ताकै अवग्रहादिक होय है । इहां कोई पूछ है; जे
बहु आदिक हैं ते अर्थ तौ हैही । फेरी सूत्र कहनेका कहा प्रयोजन ? ताका उत्तर-- जो तें पूछ्या, सो तौ सत्य है । परंतु इहां अन्यवादी कल्पना करै है तिनिका निषेधकै आर्थि । अर्थस्य । ऐसा जुदा सूत्र कह्या है । केई वादी ऐसा मानै है, कि रूप आदि गुण हैं तेही इंद्रियनिकरि स्पर्शिये हैं । तिनिकाही अवग्रह है । द्रव्यका न हो है । सो यह KI कहना अयुक्त है । जात रूपादिक गुणनिकी तौ मूर्ति आकार नांही जो इंद्रियनिकै स्पर्श होय । यहु मूर्ति तौ द्रव्यकीही है । ताहीतें इंद्रिय भिडै है । तब फेरि वादी कहै है, जो, ऐसें है तो लोक ऐसें कहै है, जो रूप में देख्या, गंध में
हु कहनां न ठहरै । ताकू कहिये, जो, पयायनिकू प्राप्त होय है तथा पर्याय जाकू प्राप्त होय ताकू अर्थे । कहिये है । सो अर्थ गुणपर्यायनिका समुदाय द्रव्यही है । ताकै इंद्रियनितें संबंध होते तातें अभिन्न जे रूपादिक गुण तिनिविर्षे ऐसा व्यवहार प्रवर्ते है, जो, 'रूप देख्या, गंध सूंघ्या इत्यादि ॥
आगें कहै है, कहा ए अवग्रहादिक सर्वही इंद्रिय मनके होय हैं कि कछु विषयविशेष हैं ? ऐसा प्रश्न होते A सूत्र कहै हैं --