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सर्वार्य
13 कारण भी कहिये, बहुरि मतिके स्वरूप पहलै कह्याही था । सो मति है कारण जाळू ताकू मतिपूर्वक कहिये । इहां ।
कोई कहै, जो, मतिपूर्वक श्रुत कह्या सो यह भी मतिस्वरूपपणांकूही प्राप्त होयगा । जाते लोकविर्षे कारणसारिखाही कार्य देखिये है । तहां कहिये हैं, जो, यहु एकांत नाही अन्यसारिखा भी होय है । जैसे घट है सो दंड चाक आदि कारणकरि निपजै है, परंतु तिस स्वरूप नाही है । बहुरि ऐसा भी है, जो, बाह्यकारण तौ मतिज्ञानादिक विद्यमान
वचसिद्धि होय अरु जाकै श्रुतज्ञानावरणकर्मका प्रवल उदय होय तौ श्रुतज्ञान होय नाही । श्रुतज्ञानावरणका क्षयोपशमका टीका
प्रकर्ष होय तब श्रुतज्ञान उपजै है। ऐसे मतिज्ञान निमित्तमात्र जाननां । मतिसारिखाही श्रुतज्ञान न जाननां ॥
बहुरि इहां कोई कहै है, जो, श्रुतकू तौ .अनादिनिधन मानिये है । याकू मतिपूर्वक कहनेते नित्यपणांका अभाव होय है । जातें जाका आदि है सो अंतसहित भी होय है । बहुरि पुरुपका कियापणातें अप्रमाण भी ठहरै है ॥ तहां आचार्य कहै हैं । यह दोप नाही है । द्रव्यादिक सामान्यकी अपेक्षा तौ श्रुत अनादिनिधन मानिये है । काहू पुरुप कोई क्षेत्रकालविर्षे नवीन किया नाही । बहुरि तिनि द्रव्य क्षेत्र काल भावनिकी विशेपकी अपेक्षाकरि श्रुतका आदि
भी संभव है । तथा अंत भी संभव है । यातें मतिपूर्वक कहिये है। जैसे अंकुर है सो वीजपूर्वक हो है । सोही । संतानकी अपेक्षाकरि अनादिनिधन चल्या आवै है । बहुरि अपौरुपेयपणां प्रमाणका कारण नाही है। जो ऐसे ? 18 होय तौ चोरि आदिका उपदेशका संतान अनादिनिधन अपौरुपेय चल्या आवै है । सो यहु भी प्रमाण ठहरै । या ।।
उपदेशका कर्ता कोईकू यादी नाही, जो, वा पुरुपनै चोरीका उपदेश चलाया है। बहुरि अनित्य प्रत्यक्षादि प्रमाणही है । अनित्यके प्रमाणता कहिये तो कहा विरोध है ? बहुरि कोई कहै है, प्रथम उपशमसम्यक्त्वकी उत्पत्ति होते ज्ञान भी सम्यक् तिसही कालमैं होय है । तातें मतिपूर्वकपणां श्रुतकै कैसै ठहरै ? ताकू कहिये । यह कहना अयुक्त है । जातें ज्ञानकै सम्यक्पणा सम्यक्त्वकी अपेक्षातें भया है । ज्ञानका स्वरूपका लाभ तौ अनुक्रमतही है । ऐसें मतिपूर्वकपणामैं विरोध नाही ॥ ___ बहुरि कोई कहै है, मतिपूर्वक इरुत है यह लक्षण तो अव्यापक है - सर्वश्रुतज्ञानमैं व्याप नाही । जाते श्रुतपूर्वक श्रुत मानिये है । सोही कहिये है। शब्दरूप परिणया जे पुद्गलस्कंध ते अक्षर पदरूप भये । तब घट आदि शब्द कर्ण इंद्रियका विपय भया । तथा ताके रूपादिक नेत्र आदिके विपय भये, पीछे तेही पहलै श्रुतज्ञानके विपय भये । तिनिमें कछु व्यभिचार नाही । तिनितें कीया है संकेत जानें ऐसा पुरुप है सो घट ऐसे शब्दके गोचर जो घटनामा पदार्थ तातें जलधारणादिक जे कार्य तिसरूप जो दूसरा संवंधका विशेप ताही प्राप्त हो है । तथा धूमादिक पदार्थते