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रावचनिका
का पान
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15) मारणांतिक समुद्धात करै, ताकी अपेक्षा है । बहुरि प्रमत्तसंयत आदि अयोगकेवलीपर्यंतनिका क्षेत्रवत् स्पर्शन है ॥
विशेषकरि गतिका अनुवादकरि प्रथमपृथिवीवि नारकोनिकै च्यारि गुणस्थानवालेकै लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्श है। दूसरीतें लगाय छठी पृथिवीताईके नारकोनिक मिथ्यावृष्टिनिकै सासादनसम्यग्दृष्टीनिकै लोकका असंख्यातवा भाग
स्पर्श है । अर चोदह भागमैतूं एक भाग दोय भाग तीन भाग च्यारि भाग पांच भाग कछू घाटि है। यहू मारसवाथ
णांतिक अपेक्षा है । सम्यमिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टिनिकै लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्श है । बहार सातमी पृथिवीटी का वाले मिथ्यादृष्टिनिकै लोकका असंख्यातवा भाग है । अर छह भाग देशोन चोदह भागमैसूं है सो मारणांतिक अपेक्षा
है । बहुरि तीन गुणस्थानवालेकै लोकका असंख्यातवा भाग है । वहुरि तिर्यचगतिवि तिर्यंचमिथ्यादृष्टिनिकै सर्वलोक है। सासादनसम्यग्दृष्टिनिकै लोककै असंख्यातवा भाग है । असंयतसम्यग्दृष्टि संयतासंयतनिकै लोकका असंख्यातवा भाग है । अर चोदह भागमैसूं छह भाग कछु घाटि मारणांतिक अपेक्षा है । वहुरि मनुष्यगतिवि मिथ्यादृष्टी मनुष्यलोकका असंख्यातवा भाग स्परौं है । अर मारणातिक अपेक्षा सर्वलोक स्परौं है । सासादनसम्यग्दृष्टि लोकका असंख्यातवा भाग स्परौं है । चोदह भागमैतूं सात भाग कळू घाटि मारणांतिक अपेक्षा स्पर्श है। सम्यमिथ्यादृष्टि आदि अयोगकेवलीपर्यंतनिकै क्षेत्रवत् स्पर्शन है । देवगतिवि देव मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टि लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्श हैं । अर चौदह भागमैतूं आठ भाग नव भाग देशोन परस्थानविहार अपेक्षा तीसरी पृथिवीताई गमन मारणांतिक अपेक्षा लोकके अग्रभागवि उपजे तव स्पर्श । सम्यमिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्श । चौदह भागमैसूं आठ भाग परस्थानविहार अपेक्षा स्पर्शे कळू घाटि है ॥ ____ इंद्रियनिके अनुवादकरि मिथ्यादृष्टि एकेंद्रिय सर्वलोक स्पर्श । विकलत्रय लोकका असंख्यातवा भाग स्पशैं । मारणांतिक अपेक्षा सर्वलोक स्पर्श। पंचेंद्रियवि मिथ्यादृष्टि लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्शे । परस्थानविहार अपेक्षा चौदह भागमैसूं आठ भाग देशोन मारणांतिक अपेक्षा सर्वलोक स्पर्श । बहुरि सासादन आदि सर्वगुणस्थानवीकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है।
कायके अनुवादकरि स्थावरकायिक ती सर्वलोक स्पर्श है इसकायिकनिकै पंचेंद्रियवत् स्पर्शन है।
योगके अनुवादकार वचनमनोयोगीनिकै मिथ्यादृष्टिनिकै लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्श है । अर चौदह भागमैंसं मा आठ भाग देशोन है । अर सर्वलोक भी है । अर सासादनसम्यग्दृष्टि आदि क्षीणकपायपर्यतनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन
है। सयोगकेवलीनिकै लोकका असंख्यातवा भाग है । काययोगानिकै मिथ्यादृष्टि आदि सयोगकेवलीपर्यतनिकै 12| अर अयोगकेवलीनिकै गुणस्थानवत स्पर्शन है ॥