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सर्वार्थ
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टीका
। आगै, कह्या इनिहींकरि जीवादिकका अधिगम होय है, कि और भी अधिगमका उपाय है ? ऐसे पूछ कहै हैं कि || 16 और भी है, ऐसा सूत्र कहै हैं
॥ सत्सङ्ख्याक्षेत्रस्पर्शनकालान्तरभावाल्पबहुत्वैश्च ॥ ८॥ याका अर्थ- सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भाव, अल्पबहुत्व इनि आठ अनुयोगनिकरि भी जीवादिक ||
निका पदार्थनिका अधिगम होय है ॥ तहां सत् ऐसा अस्तित्वका निर्देश है । सत् शब्द प्रशंसादिकवाची भी है, सो इहां न २ लेणां । बहुरि संख्या भेदनिकी गणना है । क्षेत्र निवासकुँ कहिये सो वर्तमानकालका लेणा । स्पर्शन त्रिकालगोचर है । वहुरि काल निश्चयव्यवहारकरि दोय प्रकार है, ताका निर्णय आगै कहसी । बहुरि अंतर विरहकालकू कहिये । भाव
औपशमिक आदि स्वरूप है । अल्पवहुत्व परस्पर अपेक्षाकरि थोरा घणां विशेपकी प्रतिपत्ति करना । इन आठ अनुयोगनिकरि सम्यग्दर्शनादिक बहुरि जीवादिक पदार्थनिका अधिगम जाननां ॥ इहां प्रश्न- जो, पहले सूत्रमैं निर्देशका 18 ग्रहण है ताहीत सत्का ग्रहण सिद्ध भया । बहुरि विधानके ग्रहणते संख्याकी प्राप्ति भई । अधिकरणके ग्रहणते ।।
स्पर्शनका ज्ञान होय है । स्थितिके ग्रहणते कालका ग्रहण आया । भावका ग्रहण नामादि निक्षेपवि 16 हैही । फेरि इनिका ग्रहण इन सूत्र में कौन अर्थि किया ? ताका समाधान आचार्य कहै हैं- जो; यह तो सत्य है । पहले सूत्रतें सिद्ध तो होय है । परंतु तत्त्वार्थका उपदेश भेदकार दीजिये है । सो शिष्यके आशयतें है । जाते केई शिष्य तौ संक्षेपरुचिवाले है थोरेमें बहुत समझे । बहुरि केई शिष्य विस्ताररुचिवाले हैं, बहुत कहै समझें । बहुरि केई शिष्य मध्यमरुचिवाले हैं, बहुतसंक्षेपते भी नाही समझें । वहुत विस्तार किये भी नाही समझें । बहुरि सत्पुरुपनिकै कहनेका प्रयास है सो सर्वही प्राणीनिके उपकारकै अर्थ है। यात अधिगमका उपाय भेदकार कया है । जो ऐसे न कहै तो प्रमाणनयानकार ही अधिगमकी सिद्धि हो है। अन्य कहना निष्प्रयोजन ठहरै । तातें भेदकार कहनां युक्त है।
तहां जीवद्रव्यकू आश्रयकार सत् आदि अनुयोग द्वार निरूपण करिये हैं । जीव हैं ते चोदह गुणस्थाननिवि व्यवस्थित है । तिनिके नाम- १ मिथ्यादृष्टि । २ सासादनसम्यग्दृष्टि । ३ सम्यमिथ्यादृष्टि । ४ असंयतसम्यग्दृष्टि । ५ संयतासंयत । ६ प्रमतसंयत । ७ अप्रमत्तसंयत । ८ अपूर्वकरण गुणस्थानवि उपशमक क्षपक । ९ अनिवृत्ति वादर सांपरायस्थानवि उपशमक क्षपक । १० सूक्ष्मसापरायस्थानवि उपशमक क्षपक । ११ उपशातकपाय वीतराग छद्मस्थ । १२ क्षीणकपाय वीतरागछद्मस्थ । १३ सयोगकेवली । १४ अयोगकेवली । ऐसे चौदह गुणस्थान जानने । वहरि इनित