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विशेषण शब्द अखिल-सब, सम्पूर्ण। अधिक-और बहुत। अध्येतव्य-पढ़ने योग्य। अनुत्तम-सबसे उत्तम। अभिवाद्य-नमस्कार के योग्य। अधीत-पढ़ा हुआ। अनर्घ-बहुमूल्य । अन्तिक-पास । अन्त्य-आखीर का, अन्तिम । अवाच्य-बोलने के अयोग्य। अर्पित-अर्पण किया हुआ। सन्तुष्ट-खुश, प्रसन्न। असन्तुष्ट-नाखुश, अप्रसन्न। कठिन-मुश्किल। कथनीय-कहने योग्य । तुल्य-समान। द्रष्टव्य-देखने योग्य । निकट-समीप। निखिल-सब। परिष्कृत-संस्कार किया हुआ। पूर्व-पहला। पेय-पीने योग्य। भक्ष्य-खाने 'के योग्य। दुःखित-पीड़ित। अविप्लुत-सदाचारी। अशिक्षित-अज्ञानी । ईदृश-ऐसा । ग्राह्य-लेने योग्य । चिन्तित-सोचा हुआ। दातव्य-देने योग्य । नष्ट-नाश को प्राप्त । पथ्य-हितकारक । पर-दूसरा । पालनीय-पालने योग्य। भीत-डरा हुआ। पूजनीय-सत्कार के योग्य । बुभुक्षित-भूखा। भयाकुल-डरा हुआ। मुखोद्गत-मुख से निकला हुआ।
विशेषणों का उपयोग पुल्लिंग स्त्रीलिंग
नपुंसकलिंग 1. सन्तुष्टः पुरुषः सन्तुष्टा नारी सन्तुष्टं मित्रम् 2. कथनीयः वृत्तान्तः कथनीया कथा कथनीयं चरित्रम् 3. द्रष्टव्यः ग्रामः द्रष्टव्या नदी द्रष्टव्यं दृश्यम् 4. पूर्वः पुरुषः पूर्वा दीपमाला पूर्वं पुस्तकम् 5. दुःखितः पुत्रः दुःखिता पुत्रिका दुःखितं कलत्रम् 6. दातव्यः अश्वः दातव्या गौः
दातव्यं दानम् 7. पालनीयः भृत्यः . पालनीया दासी पालनीयं मित्रम्
इस प्रकार सब विशेषणों का भिन्न लिंगों में उपयोग होता है। आशा है पाठक इस प्रकार प्रयोग करके अनेक वाक्य बनाएँगे। यहाँ पाठकों को ध्यान में रखना चाहिए कि सब अकारान्त विशेषणों का स्त्रीलिंग में 'आ' ही बनता है, ऐसा कोई पक्का नियम नहीं है। कुछ स्थितियों में 'ई' भी बनती है। जैसे-ईदृशः देशः। ईदृशी अवस्था। ईदृशं नगरम्।
इसका विशेष नियम आगे बताया जाएगा। साथ ही पाठकों को ध्यान में रखना चाहिए कि संस्कृत में (विशेष्य-विशेषणों के) लिंग, विभक्ति तथा वचन समान ही होते हैं। जैसे
(क) 1. दातव्यम् अश्वं सः आनयति। 2. दातव्याय अश्वाय जलं देहि। |120| 3. दातव्यस्य अश्वस्य वस्त्रं कुत्र अस्ति ?