Book Title: Sanskrit Swayam Shikshak
Author(s): Shripad Damodar Satvalekar
Publisher: Rajpal and Sons

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Page 318
________________ धातु का यह रूप स्मरण रखना चाहिए।) 11. ग्रस् (अदने) = भक्षण करना-ग्रस्ते, ग्रससे, ग्रसे। 12. घट (चेष्टायाम्) = प्रयत्न करना-घटते, घटसे, घटे। 13. घोष (कान्ति करणे) = चमकना-घोषते, घोषसे, घोषे। 14. घूर्ण (भ्रमणे) = घूमना-घूर्णने, घूर्णसे, घूर्णे। 15. चक् (तृप्तौ, प्रतिघाते च) = सन्तुष्ट होना, प्रतिकार करना-चकते, चकसे, चके। 16. चण्ड (कोपने) = क्रोध करना-चण्डते, चण्डसे, चण्डे। 17. चेष्ट्र (चेष्टायाम्) = उद्योग करना-चेष्टते, चेष्टसे, चेष्टे। 18. च्यु (च्यव्) (गतौ) = जाना-च्यवते, च्यवसे, च्यवे। 19. जभ (जम्भ) (गात्रविनामे) = जमुहाई लेना-जम्भते, जम्भसे, जम्भे। 20. जृम्भ (गात्रविनामे) = जमुहाई लेना-जृम्भते, जृम्भसे। 21. डी (विहायसा गतौ) = उड़ना-डयते, डयसे, डये। 22. तण्ड् (संतापे) = पीटना-तण्डते, तण्डसे, तण्डे। 23. ताय् (सन्तान पालनयो): = फलना, रक्षण करना-तायते, तायसे, ताये। वाक्य 1. यज्ञः तायते। 2. तो बालकं तण्डेते। 3. काकाः डयन्ते। 4. इदानीं बालकः जृम्भते। 5. स पुरुषश्चेष्टते। 6. चक्रं घूर्णते। 7. अश्वस्तृणं ग्रसते। 8. ततो न वि-जुगुप्सते। 9. स तस्मिन्कूपे गाहते। 10. स तं गर्हते। 11. तौ तं गर्हेते। 12. बालकौ काष्ठं खण्डेते। 13. सागर इदानीं क्षोभते। 14. अहं तं क्षमे। 15. त्वं तं किमर्थं न क्षमसे ? 16. तौ तत्र गाहेते। 17. स अतीव चण्डते। 18. त्वं तं किमर्थं तण्डसे ? यज्ञ विस्तृत होता है। वे दोनों एक बालक को पीटते हैं। बहुत कौवे उड़ते हैं। अब लड़का जमुहाई लेता है। वह पुरुष यत्न करता है। चक्र घूमता है। घोड़ा घास खाता है। उससे विशेष निन्दा नहीं करता। वह उस कुएं में स्नान करता है। वह उसको निन्दता है। वे दोनों उसको निन्दते हैं। दो बालक लकड़ी तोड़ते हैं। समुद्र अब क्षुब्ध होता है। मैं उसको क्षमा करता हूँ। तू उसको क्यों क्षमा नहीं करता ? वे दोनों वहां स्नान करते हैं। वह बहुत क्रोध करता है। तू उसे क्यों पीटता है ? 169

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