Book Title: Sanskrit Swayam Shikshak
Author(s): Shripad Damodar Satvalekar
Publisher: Rajpal and Sons

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Page 341
________________ षष्ठ गण । उभयपद धातु 1. कृष् (विलेखने) = खेती करना, हल चलाना - कृषति, कृषते । कर्क्ष्यति, कर्क्ष्यते, क्रक्ष्यति, क्रक्ष्यते । अकृषत्, अकृषत। (भविष्यकाल के चार-चार रूप होते हैं ।) 2. क्षिप् (क्षेपणे) = फेंकना - क्षिपति, क्षिपते । क्षेप्स्यति, क्षेप्स्यते । अक्षिपत्, अक्षिपत । दुःख होना - तुदति तुदते । तोत्स्यति, तोत्स्यते । अतुदत्, 3. तुद् (व्यथने) 4. नृद् ( प्रेरणे) = = अतुदत । प्रेरणा करना - नुदति, नुदते । नोत्स्यति, नोत्स्यते । अनुदत्, अनुदत । 5. दिश् (आज्ञापने) = आज्ञा करना - दिशति, दिशते । देक्ष्यति, देक्ष्यते । अदिशत्, अदिशत् । 6. मिलू (संगमे ) = मिलना - मिलति, मिलते। मेलिष्यति । मेलिष्यते । अमिलत्, अमित । 1 7. मुच ( मोचने) = स्वतन्त्र करना, खुला करना - मुञ्चति, मुञ्चते । मोक्ष्यति, मोक्ष्यते । अमुञ्चत्, अमुञ्चत । 8. लिप् ( उपदेहे ) = लेपन करना - लिम्पति लिम्पते । 1 9. विंदू (लाभ) = प्राप्त होना - विन्दति, विन्दते । वेत्स्यति, वेत्स्यते । वेदिष्यति, वेदिष्यते। अविन्दत्। अविन्दत । वाक्य कृषीवलः क्षेत्र कृषति । धनुर्धरो बाणान् क्षिपति । राजा भृत्यान् आदिशते । त्वं तेन सह किमर्थं न मिलसे । स बन्धनात् अमुञ्चत् । पुरुषार्थी धनं विन्दते । पाठ 52 द्वितीय गण । परस्मैपद प्रथम गण के लिए 'अ', दशम गण के लिए 'अय' और षष्ठ गण के लिए 'अ' ये चिह्न लगते हैं, ऐसा पूर्व पाठों में कहा है। इस प्रकार कोई चिह्न द्वितीय गण के लिए नहीं लगता । धातु के साथ प्रत्यय लगाकर एकदम रूप बनते हैं । देखिए - = रक्षा करना - पाति । पास्यति । अपात् । 192 1. पा (रक्षणे )

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