Book Title: Sanskrit Swayam Shikshak
Author(s): Shripad Damodar Satvalekar
Publisher: Rajpal and Sons

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Page 365
________________ धातु 1. पू (पवने) = शुद्ध करना-(परस्मैपद) पुनाति। अपुनात्। पविष्यति। (आत्मनेपद) पुनीते, अपुनीत, पविष्यते। 2. बन्ध् (बन्धने) = बांधना-(परस्मैपद) बध्नाति। अबध्नात्। भन्त्स्यति। 3. ज्ञा (अवबोधने) = जानना-(परस्मैपद) जानाति। अजानात्, ज्ञास्यति। (आत्मनेपद) जानीते।। अजानीत। ज्ञास्यते। 4. अश् (भोजने) = खाना-(परस्मैपद) अश्नाति। अश्नात्। अशिष्यति। 5. ग्रह (उपादाने) = ग्रहण करना-परस्मैपद । गृह्लाति। अगृह्लात् । ग्रहीष्यति। __(आत्मनेपद) गृह्लीते। अगृलीत। गृहीष्यते। 6. प्री (तर्पणे) = तृप्त होना-(परस्मैपद) प्रीणाति। अप्रीणीत्। प्रेष्यति। __(आत्मनेपद) प्रीणीते, अप्रीणीत। प्रेष्यते। 7. लू (छेदने) = काटना-(परस्मैपद) लुनाति । अलुनात्। लविष्यति। (आत्मनेपद) लुनीते। अलुनीत। लविष्यते। 8. वृ (वरणे) = पसन्द करना-(परस्मैपद) वृणाति। अवृणीत्। वरीष्यति, वरिष्यति। (आत्मनेपद) वृणीते। अवृणीत । वरिष्यते, वरीष्यते। 9. मन्य् (विलोडने) = मन्थन करना-(परस्मैपद) मनाति। अमथ्नत्।ि मन्थिष्यति। वाक्य 1. स वृक्षं लुनाति। 2. यत् त्वं ददासि तदहं गृह्णामि। 3. स न अजानात्। 4. वायुः पुनाति सविता पुनाति।। 5. स जलं स्तभ्नाति। 6. तौ पात्रं क्रीणीतः। 7. त्वं किमश्नासि ? 8. स दधि मध्नाति। 9. तौ किं क्रीणीतः ? वह वृक्ष काटता है। जो तू देता है वह मैं लेता हूँ। उसने नहीं जाना। हवा स्वच्छ करती है, सूर्य शुद्ध करता है। वह जल का निरोध करता है। वे दोनों बरतन खरीदते हैं। तू क्या भोजन करता है। वह दही मन्थन करता है। वे दो क्या खरीदते हैं।

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