Book Title: Sanskrit Swayam Shikshak
Author(s): Shripad Damodar Satvalekar
Publisher: Rajpal and Sons

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Page 360
________________ 12. वस्त्रैः स पुस्तकानि स्तृणोति। कपड़ों से वह पुस्तकें ढांपता है। 13. समुद्रस्य पारं गन्तुं स नाशकत्। समुद्र के पार जाने के लिए वह समर्थ न हुआ। 14. धर्माचरणेन मनुष्यः सुखं आप्स्यति ।धर्माचरण से मनुष्य सुख प्राप्त करेगा। पाठ 57 सप्तम गण के धातु सप्तम गण का चिह्न 'न' है और वह धातु के अन्तिम स्वर के पश्चात् और अन्तिम व्यञ्जन के पूर्व लगता है। पिष् (संचूर्णने) = पीसना-परस्मैपद पिष् = (प-इ-ष्)+न = (प-इ-नष् = पिनष्+ति=पिनष्टि । इस प्रकार रूप बनते हैं। द्विवचन बहुवचन के प्रत्ययों से पूर्व नकार के अकार का लोप होता है। जैसा :पिनष्+तः = पिन्ष्-तः = पिंष्टः । षकार के पास आये हुए तकार का टकार बनता है। और नकार का अनुस्वार बन जाता है। वर्तमान काल पिनष्टि पिंष्टः पिनक्षि पिंष्ठः पिंष्ठः पिनष्मि पिंष्वः पिंष्मः पिंपन्ति भूतकाल अपिनट अपिंष्टाम् अपिंपन् अपिनट अपिष्टम् अपिष्ट अपिंषम् अपिंष्व अपिष्म भविष्य-पेक्ष्यति। पेक्ष्यसि। पेक्ष्यामि। युज् (योगे) = उभयपद-योग करना। परस्मैपद वर्तमान-युनक्ति, युङ्क्तः, युञ्जन्ति। युनक्षि, युक्थः, युथ, युनज्मि, युज्वः, युज्मः । भूत-अयुनक्, अयुङ्क्ताम्, अयुजन्। अयुनक्, अयुङ्क्तम्, अयुङ्क्त। अयुजनम्, अयुज्व, अयुज्म। भविष्य-योक्ष्यति। 211

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