Book Title: Sanskrit Swayam Shikshak
Author(s): Shripad Damodar Satvalekar
Publisher: Rajpal and Sons

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Page 339
________________ षष्ठ गण। भविष्यकाल गुजिष्यति गुजिष्यतः गुजिष्यन्ति गुजिष्यसि गुजिष्यथः गुजिष्यथ गुजिष्यामि गुजिष्यावः गुजिष्यामः षष्ठ गण। भूतकाल अगुजत् अगुजताम् अगुजन् अगुजः अगुजतम् अगुजत अगुजम् अगुजाव अगुजाम प्रथम गण में 'गु' का गुण होकर 'गो' हो गया है और 'गोजति' रूप हो गया है। षष्ठ गण में गुण नहीं हुआ और 'गुजति' रूप हुआ है। इसी प्रकार भेद देखकर ध्यान में रखना चाहिए। षष्ठ गण में भविष्यकाल के रूपों में किसी समय गुण हुआ करता है। इसका पता रूपों को देखने से लग जाएगा। पिछले पाठों में प्रथम, दशम और षष्ठ गण के धातु आये हैं। इनमें कई धातु एक ही हैं, उनके रूप जो साथ-साथ दिये हैं, एक के साथ तुलना करके देखने से पाठकों को पता लग सकता है कि इन गणों में परस्पर भेद क्या है। इस भिन्नता को देख और अनुभव करके उनकी विशेषता को ध्यान में रखना चाहिए। षष्ठ गण। परस्मैपद के धातु 1. मिष् (स्पर्धायाम्) = स्पर्धा करना-मिषति। मेषिष्यति। अमिषत्। 2. मृड् (सुखने) = सुख देना-मृडति। मर्डिष्यति। अमृडत्। 3. मृश् (आमर्शने प्रणिधाने च) = स्पर्श करना, विचार करना-मृशति। मयंति, म्रक्ष्यति। अमृशत् । (इस धातु के भविष्य में दो रूप होते हैं।) 4. लिख (अक्षरविन्यासे) = लिखना-लिखति। लिखिष्यति। अलिखत्। 5. लुभ् (विमोहने) = मोह होना-लुभति। लोभिष्यति। अलुभत्। 6. विश् (प्रवेशने) = अन्दर जाना-विशति। वेक्ष्यति। अविशत् । 7. व्रश्च् (छेदने) = काटना-वृश्चति। ब्रश्चिष्यति, व्रक्ष्यति। 8. शुभ । 9. शुम्भ् । सामान (शोभायाम्) = सुशोभित होना-शुभति, शुम्भति। शोभिप्यति, शुम्भिष्यति। अशुभत्, अशुम्भत्। 10. सद् (विसरणगत्यवसादनेषु) = तोड़ना, जाना, उदास होना-सीदति । सत्स्यति । असीदत्।

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