Book Title: Sanskrit Swayam Shikshak
Author(s): Shripad Damodar Satvalekar
Publisher: Rajpal and Sons

View full book text
Previous | Next

Page 350
________________ वाक्य अहं तम् अद्विषि। ते सर्वेऽपि तम् अद्विषन् त्वं किमर्थं द्वेक्षि ? युवां न द्विष्ठः। आवां ह्यः अजागृवः। त्वं श्वः जागरिष्यसि किम्। सर्वे वयं अद्य जागृमः। ईश्वरो द्विपदश्चतुष्पदः ईष्टे। मैं उसको द्वेष करता था। वे सब भी उसको द्वेष करते थे। तू क्यों द्वेष करता है ? तुम दोनों द्वेष नहीं करते। हम दोनों कल जागते रहे। क्या तू कल जागेगा ? हम सब आज जागते हैं। परमेश्वर द्विपाद और चतुष्पादों पर प्रभुत्व करता है। मैंने व्याकरण पढ़ा नहीं। तू क्या पढ़ता है ? वह ज्योतिष पढ़ेगा। वे दोनों गणित पढ़ते हैं। बैठा है वह वहां। हम सब यहाँ ही बैठते हैं। तुम दोनों वहां बैठोगे। मैं वहां नहीं बैलूंगा। कौन वहां बैठेगा ? अहं व्याकरणं नाध्यैयि। किमध्येषि। स ज्यौतिषमध्येष्यते। तौ गणितं अधीयाते। आस्ते स तत्र। वयं सर्वे अत्रैवास्महे। युवां तत्र आसिष्येथे। अहं नैव तत्रासिष्ये। कस्तत्रासिष्यते। पाठ 54 तृतीय गण। उभयपद ___दा (दाने) = देना परस्मैपद। वर्तमान काल ददाति दत्तः ददति ददासि दत्यः दत्य ददामि दद्वः दद्मः तृतीय गण के धातुओं की विशेषता यह है कि इस गण के वर्तमान और भूतकाल - के रूप होने के समय धातु के पहले अक्षर का द्वित्व होता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366