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भविष्य-वेक्ष्यति। वेक्ष्यसि । वक्ष्यामि। भूत-अवेवेट्, अवेविष्टाम्, अवेविषुः। अनेवेष्ट, अवेविष्टाम्, अवेविषुः। अवेवेट अविष्ठम्, अविष्ठ। अवेविषम्, अवेविष्व, अविष्म। (पद के अन्तिम ट्कार का ड्कार होता है। जैसे-अवेवेट्, अवेवेड् ।) _ हा (त्यागे) = त्यागना
परस्मैपद वर्तमान-जहाति, जहीतः, जहति। जहासि, जहीथः, जहीथ। जहामि, जहीवः, जहीमः। भविष्य-हास्यति। हास्यसि। हास्यामि। भूत-अजहात्, असंहीताम्, अजहुः । अजहाः, अजहीतम्, अजहीत। अजहाम्, अजहीव, अजहीम।
(इस धातु के दीर्घ 'ही' के स्थान पर ह्रस्व होकर और रूप बनते हैं। जैसे-जहीतः, जहिवः । अजहिव, अजहिम। इ.)
हु (दानादानयोः) देन, लेन, खाना
परस्मैपद वर्तमान-जुहोति, जुहुतः, जुह्वति। जुहोषि, जुहथः, जुहुथ। जुहोमि, जुहुवः, जुहुमः । भविष्य-होष्यति। होष्यसि। होष्यामि। भूत-अजुहोत्, अजुहुताम्, अजुहुवुः । अजुहोः, अजुहुतम्, अजुहुत। अजुहवम्, अजुहुव, अजुहुम।
इस प्रकार तृतीय गण के धातुओं के रूप होते हैं। द्वितीय और तृतीय गण में धातु बहुत थोड़े हैं, परन्तु जो हैं उनके सब रूप विलक्षण होते हैं, और विशेष लक्ष्यपूर्वक ध्यान में धरने पड़ते हैं, इसलिए पुस्तक के इस भाग में उनमें से थोड़े ही धातु दिये हैं और जो दिये हैं, उनके रूप भी साथ-साथ दिये हैं, जिससे पाठक आसानी के साथ उन धातुओं का अभ्यास कर सकते हैं। पाठकों को चाहिए कि वे इन दोनों गणों के रूपों को अच्छी प्रकार स्मरण करें।
वाक्य 1. अहम् अद्य जुहोमि।
मैं आज हवन करता हूँ। 2. स कदा होष्यति।
वह कब हवन करेगा ? 3. तौ ह्य एव अजुहुताम्। उन दोनों ने कल ही हवन किया।