Book Title: Sanskrit Swayam Shikshak
Author(s): Shripad Damodar Satvalekar
Publisher: Rajpal and Sons

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Page 331
________________ 182 आशा है कि पाठक इन बातों को स्मरण रखकर इन धातुओं के प्रयोग बनाकर उनका वाक्यों में उपयोग करेंगे। पाठ 49 संस्कृत में धातुओं के गण दस हैं। प्रथम गण का वर्णन यहां तक हुआ। अब दशम गण का परिचय कराना है अर्च् (पूजायाम्) अर्चयति अर्चयसि अर्चयामि अर्चयते अर्चयसे अर्चये = अर्चयिष्यति अर्चयिष्यसि अर्चयिष्यामि दशम गण - उभयपद अर्चयिष्यते अर्चयिष्यसे अर्चयिष्ये पूजा करना परस्मैपद, वर्तमान काल अर्चयतः अर्चयथः अर्चयावः आत्मनेपद, वर्तमान काल अर्चयेते अर्चयेथे अर्चयावहे परस्मैपद, भविष्य काल अर्चयिष्यतः अर्चयिष्यथः अर्चयिष्यावः अर्चयन्ति अर्चयथ अर्चयामः अर्चयन्ते अर्चयध्वे अर्चयामहे अर्चयिष्यन्ति अर्चयिष्यथ अर्चयिष्यामः आत्मनेपद, भविष्यकाल अर्चयिष्येते अर्चयिष्येथे अर्चयिष्यावहे यहां पाठक देखेंगे कि इस गण के रूप प्रथम गण के बराबर ही होते हैं, परन्तु बीच में दशम गण का चिह्न 'अय' लगता है, इतना ही केवल भेद होने से प्रथम गण के रूप जाननेवाले विद्यार्थी के लिए दशम गण के रूप बनाना कोई कठिन नहीं । अर्च्+अय+ति=अर्चयति । अर्च् +अय्+इ+ष्य+ति=अर्चयिष्यति इत्यादि। अर्चयिष्यन्ते अर्चयिष्यहवे अर्चयिष्यामहे

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