Book Title: Sanskrit Swayam Shikshak
Author(s): Shripad Damodar Satvalekar
Publisher: Rajpal and Sons

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Page 325
________________ 176 अनयत् अनयः अनयम् अनयत अनयथाः भूतकाल, परस्मैपद अनयेताम् अनयेतम् अनयाव अनयन्त अनयध्वम् अन अनयाम इस प्रकार प्रत्येक उभयपद धातु के दोनों प्रकार के रूप बनते हैं । पाठक सब धातुओं के रूप बनाकर लिखें । यह 'नी' ( प्रापणे ) धातु परस्मैपद में दिया है। वास्तव में यह उभयपद का धातु है । उभयपद के धातुओं के रूप परस्मैपद के अनुसार भी होते हैं, इसलिए उभयपद के कई धातु परस्मैपद में दिए गए हैं । उभयपद के धातु- प्रथम गण 1. अञ्च् (गतौ याचने च ) 2. क्रन्द्र (रोदने) भूतकाल, आत्मनेपद अनयेताम् अनयेथाम् अनयावहि अनयन् अनयत अनयाम् = जाना, मॉगना। अञ्चति, अञ्चते । अञ्चिष्यति, अञ्चिष्यते । आञ्चत्, आञ्चत । रोना - क्रन्दति, क्रन्दते । क्रन्दिष्यति, क्रन्दिष्यते । अक्रन्दत्, = अक्रन्दत । 3. खन् (अवदारणे) = खोदना - खनति, खनते । खनिष्यति । खनिष्यते । अखनत्, अखनत । 4. गुहू ( संवरणे) = ढांपना - गूहति, गूहते । गूहिष्यति, गूहिष्यते, घोक्ष्यति, घोक्ष्यते । अगूहत्, अगूहत । ( इस धातु के भविष्य के चार रूप होते हैं, एक समय 'इ' लगती है, दूसरे समय नहीं लगती ।) 5. चष् (भक्षणे) = खाना - चषति, चषते । चषिष्यति, चषिष्यते । अचषत्, अचषत । 6. छद् (आच्छादने) = ढांपना - छदति, छदते । छदिष्यति, छदिष्यते । अच्छदत्, अच्छदत । 7. जीव् (प्राणधारणे) = जीना - जीवति, जीवते । जीविष्यत्ति, जीविष्यते । अजीवत्, अजीवत । 8. त्विष ( त्वेषु ) ( दीप्तौ) = प्रकाशना-त्वेषति, त्वेषते । त्वक्ष्यति, त्वक्ष्यते ।

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