Book Title: Sanskrit Swayam Shikshak
Author(s): Shripad Damodar Satvalekar
Publisher: Rajpal and Sons

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Page 327
________________ 178 23. लष् (कान्तौ) = इच्छा करना - लषति, लषते । लषिष्यति, लषिष्यते । अलषत्, अलषत । 24. बद् (संदेशवचने) = संदेश देना, जताना - वदति, वदते । वदिष्यति, वदिष्यते । अवदत् अवदत । वाक्य 1. रामो लक्ष्मणमवदत् । 2. रामो राजमणिः सदा विराजते । राम ने लक्ष्मण से कहा । राम राजाओं में श्रेष्ठ होकर सदा शोभता है। विश्वामित्र यजन करता है । वे दोनों वस्त्रों को रंगते हैं । वह जानता है परन्तु तू नहीं जानता । देख, वह कैसे दौड़ता है ! चक्र धारण करता है इसलिए उसको चक्रधर कहते हैं । 8. ब्रह्मचारी चिरञ्जीवति । ब्रह्मचारी बहुत काल तक जीता रहता है। 9. किमर्थमिदानीं स्वशरीर-माच्छादयसि ? क्यों अब अपना शरीर ढांपता है ? देवदत्त अन्न पकाता है । ब्राह्मण भूमि मांगता है। वह जल से पात्र भरता है । तू कहां हवन करता है ? देवशर्मा पैसा मांगता है । वे दोनों तुमको समझाएंगे। 3. विश्वामित्रो यजते । 4. तौ वस्त्राणि रजतः । 5. स बोधति परन्तु त्वं न बोधसि । 6. पश्य स कथं धावति । 7. चक्रं धरति इति चक्रधरः । 10. देवदत्तोऽन्नं पचति । 11. ब्राह्मणो वसुधां याचते । 12. स जलेन पात्रं भरति । 13. त्वं कुत्र यजसि ? 14. देवशर्मा द्रव्यं याचते । 15. तौ त्वां बोधिष्येते । पाठ 48 प्रथम गण-उभयपद धातु 1. वप् (बीजसन्ताने) बीज बोना - वपति, वपते । वप्स्यति, वप्स्यते । अवपत्, अवपत । 2. वहू ( प्रापणे) = ले जाना - वहति, वहते । वक्ष्यति, वक्ष्यते । अवहत्, अवहत । 3. वृ (वर्) (आवरणे) = ढांपना - वरति, वरते । वरिष्यति, वरिष्यते । अवरत्, अवरत । 4. वे (वय्) (तन्तुसन्ताने) = कपड़ा बुनना - वयति, वयते । वास्यति, वास्यते । 1 =

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