Book Title: Sanskrit Swayam Shikshak
Author(s): Shripad Damodar Satvalekar
Publisher: Rajpal and Sons

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Page 317
________________ 8. वृक्षाः कम्पन्ते। 9. बालाः क्रन्दन्ते। 10. दीपाः प्रकाशन्ते। सब वृक्ष हिलते हैं। सब लड़के चिल्लाते हैं, रोते हैं। सब दीप प्रकाशते हैं। पाठ 45 प्रथम गण। आत्मनेपद। प्रत्यय एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष ते अन्ते मध्यम पुरुष से इथे ध्वे उत्तम पुरुष इ वहे क्लीव् अधाष्ट्यर्थे । [डरपोक होना] क्लीव्+अ+ते क्लीवते क्लीव्+अ+से क्लीवसे क्लीव्+अ+इ=क्लीवे धातु+प्रथम गण का चिन्ह अ+प्रत्यय मिलकर क्रियापद बनता है। पाठक अब सब आत्मनेपद के धातुओं के वर्तमान काल के रूप बना सकते हैं। धातु। प्रथम गण। आत्मनेपद। 1. क्षम् (सहने) = सहन करना-क्षमते, क्षमसे, क्षमे। 2. क्षुभ् (क्षोभे) (संचलने) = हलचल मचना-क्षोमते, क्षोभसे, क्षोभे। 3. खण्ड (भेदने) = तोड़ना-खण्डते, खण्डसे, खण्डे। 4. कूर्दू (क्रीड़ायाम्) = खेलना-कूदते, कूर्दसे, कूर्दे। 5. खुई (क्रीड़ायाम्) = खेलना-खूर्दते, खूर्दसे, खूर्दे। 6. गहू (कुत्सायाम्) = निन्दा करना-गर्हते, गर्हसे, गर्थे। 7. गल्भ (धाष्ट्र्ये) = धैर्यवान् होना-गल्भते। इस धातु का प्रयोग प्रायः 'प्र' के साथ होता है। प्रगल्भते, प्रगल्भसे, प्रगल्भे। 8. गाथ् (प्रतिष्ठालिप्सयोर्ग्रन्थे च) = चलना, ढूंढना, ग्रन्थ सम्पादन करना-गाधते, गाधसे, गाधे। 9. गाह् (विलोड़ने) = स्नान करना-गाहते, गाहसे, गाहे। 168| 10. गुप् (जुगुप्) (निन्दायाम्) = निन्दा करना-जुगुप्सते, जुगुप्ससे, जुगुप्से। (इस

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